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________________ पञ्चम परिच्छेद स्त्रीधन निम्नलिखित पाँच प्रकार की सम्पत्ति स्त्री-धन होती है (१) १ - अध्यग्नि - जो कुछ अग्नि और ब्राह्मणों की साक्षी में लड़की को दिया जाता है, अर्थात् वह आभूषण इत्यादि जो पुत्री को उसके माता-पिता विवाह समय देते हैं ( २ ) । २ - अध्याहवनिक - ( लाया हुआ ) जो द्रव्य वधू अपने पिता के घर से अपने पिता और भाइयों के सम्मुख लावे ( ३ ) | -- ३ – प्रीतिदान – जो सम्पत्ति श्वसुर और सासु वधू को विवाहसमय देते हैं ( ४ ) । ४ - प्रदयिक ( सौदयिक ) – जो सम्पत्ति विवाह के पश्चात् माता पिता या पति से मिले ( ५ ) । ५ — अन्वाध्येय – जो वस्तुएँ विवाह समय अपनी या पति के - कुटुम्ब की स्त्रियों ने दी हों ( ६ ) | ( १ ) भद्र० १० ; वर्ध० ३६-४५ । ( २ ) ८१; ( ३ ) ८६; ( ४ ) ८७; (*) ८८; ( ६ ) 33 33 " " 23 Jain Education International ८६; " " "" " ४०; ४१; ४२; ४३; ” ४४; "" "3 ० ० १३८ । १३६ । १४० । १४१ । १४२ । 39 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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