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________________ दामजी ब० दाहीबाई २८ बम्बई ३१६ ) यदि पुत्र अपने पिता के शरीक है और सम्पत्ति बाबा की है तो उसमें उसका अधिकार है 1 विभाग के पश्चात् विभाजित पिता की सम्पत्ति का माता के होते हुए वह स्वामी नहीं हो सकता | क्योंकि उसकी माता ही उसकी अधिकारिणी होगी। यदि माता पिता दोनों मर जावें तो औरस वा दत्तक जैसा पुत्र हो वही दायाधिकारी होगा ( ८ ) । बिना पुत्र के मर जाने पर उसकी विधवा किसी मनुष्य के उसकी सम्पत्ति की सम्पूर्ण अधिकारिणी होती है ( ), चाहे • ( 4 ) भद्र० ३० । C (&) ,, ६५; श्रह '० ११५ व १२५, तथा निम्नलिखित नजीरें - क - मदनजी देवचन्द ब० त्रिभवन वीरचन्द १२इ० के० ८६२ = लॉ रिपोर्टर १३ पृ० ११२१ । - बम्बई - ख - मदनजी ब० त्रिभवन ३६ बम्बई ३६६ । ग- शिम्भूनाथ ब० ज्ञानचन्द १६ इटा० ३७६; परन्तु इस मुकदमे में अपने पति की सम्पत्ति की वह पूर्ण स्वामिनी करार दी गई थी, न कि बाबा की सम्पत्ति की । इस मुकदमे का उल्लेख ६६ इ० के ० ० पृ० ६३६ = २४ इ० ला० ज० पृ० ७५१ पर आया है । घ- घीसनमल ब० हर्षचन्द ( सन् १८८१ ) सेलेक्ट केसेज ४३ ( श्रवध ) । ङ - विहारीलाल ब० सुखवासीलाल ( सन् १८६५ का अप्रकाशित फ़ैसला ) उल्लिखित सिलेक्ट केसेज़ अवध पृ० ३४ व ६ एन० डब्ल्यु ० पी० हाईकोर्ट रिपोर्ट ३६२ - ३६८ ( इसमें यह निर्णय हुआ है कि विधवा को पति की अविभाजित मौरूसी ( बाबा की ) सम्पत्ति के, पति के भाइयों के विरोध में भी बेचने का अधिकार है । च——हुलन राय ब० भवानी ( सन् १८६४ प्रकाशित ) से० के० अवध पृ० ३४ में इसका उल्लेख है । इसमें करार दिया गया है। कि पुराने रिवाज और बिरादरी के व्यवहार के अनुसार विधवा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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