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________________ सम्पत्ति विभाजित हो चाहे अविभाजित हो ( देखो इन्द्रनन्दि जिनसंहिता श्लो० १५)। पति के भाग की पुत्र की उपस्थिति में भी वह पूर्ण स्वामिनी होती है ( देखो अर्हन्नीति ५४)। यदि श्वसुर पहिले मर जाय और पति का पीछे कालान्त हो तो वह अपने पति की सम्पूर्ण सम्पत्ति की अधिकारिणी होगी (१०)। यदि वह पुत्री के प्रेमवश पुत्र को गोद न ले और पुत्री को अपनी दायाद नियुक्त करे तो उसके मरने पर उसकी सम्पत्ति की अधिकारिणी उसकी पुत्री होगी, न कि उस (विधवा) के पति के कुटुम्बी जन। और उस पुत्री की मृत्यु के पश्चात् भी वह सम्पत्ति उसके पिता के कुटुम्बी जनों को नहीं पहुँचेगी, किन्तु उसके पुत्र को मिलेगी यदि पुत्र न हो तो उसके पति को (११)। इसका कारण यह है कि पुत्री भी पूर्ण अधिकारिणी ही होती है; मौरूसी अविभाजित स्थावर धन पर अपने पति की जङ्गम सम्पत्ति के अनुसार ही पति के समान पूर्ण अधिकार होता है। छ-शिवसिंह राय ब. मु. दाखो ६ एन. डब्ल्यु. पी. हा. रि० ३८२ और अपील का फैसला १ इला. पृ० ६८८ प्री० को. जिसमें सम्बन्ध पति की निजी सम्पत्ति का है। ज-हरनाभ राय ब० मण्डलदास २७ कल. ३७६ । इसमें पति की निजी सम्पत्ति का सम्बन्ध है। परन्तु अदालत ने पति की निजी सम्पत्ति और मौरूसी जायदाद में भेद मानना अस्वीकार किया। झ-सोमचन्द सा० ब मोतीलाल सा० इन्दौर हाईकोर्ट इब्तदाई मु० नं. ६ सन् १९१४ जो मि० जुगमन्दर लाल जैनी के जैन लाँ में छपा है। ज्ञ-मौजीलाल ब० गोरी बहू, अप्रकाशित, उल्लिखित ७८ इंडि० के० १६१-४६२, किन्तु इसमें बेवा को पति की निजी सम्पत्ति की पूर्ण स्वामिनी माना है। (१०) भद्र० ६५ । (११),, ६५-६७; अह ० ११५-११७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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