SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २-पैत्रिक सम्पत्ति की सहायता बिना जो द्रव्य किसी ने विद्या आदि गुणों द्वारा उपार्जन किया हो, जैसे, विद्या-ज्ञान द्वारा आय (५) । __३-जो सम्पत्ति किसी ने अपने मित्रों अथवा अपनी स्त्री के बन्धुजनों से प्राप्त की हो (६)। ४-जो खानों में गड़ी हुई उपलब्ध हो जावे अर्थात दफीना आदि (७)। ५---जो युद्ध अथवा सेवा-कार्य से प्राप्त हुई हो (८) । ६-जो साधारण आभूषणादिक पिता ने अपनी जीवनावस्था में अपने पुत्रों वा उनकी स्त्रियों को स्वयं दे दिया हो ()। ७-स्त्री-धन (१०)। ८-पिता के समय की डूबी हुई सम्पत्ति जिसको किसी भाई ने अविभाजित सम्पत्ति की सहायता बिना प्राप्त की हो (१० अ)। परन्तु स्थावर सम्पत्ति की दशा में वह पुरुष जो उसे प्राप्त करे केवल अपने सामान्य भाग से चतुर्थ अंश अधिक पावेगा (११)। ___ (५) भद्र० १०२ और १०३; वर्ध० ३७-३८; अहं ० १३३-१३५; इन्द्र० २१ । (६) भद्० १०२; अहं ० १३३---१३५; वर्ध०३७-३८ । (७), १०२। (८) वध ३७-३८; अहं० १३३-१३५ । (६) अहं ० १३२ । (१०) भद्र० १०१; वध ३६-४५, इन्द्र० ४७-४८; अहं. १३६-१४३। (१० अ) व ३७-३८; अहं ० १३३-१३५ । (११) इन्द्र. २० (मित्ताक्षरा लॉ का भी यही भाव है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy