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________________ चाहिए, यदि वह न हो तो बाबा, भाई, चाचा, पिता, गोत्र का कोई व्यक्ति, गुरु, नाना, मामा क्रमशः इस कार्य को करें (३०)। यह कोई न हो तो कन्या स्वयं अपना विवाह कर सकती है ( ३१ )। बिना सप्तपदी के विवाह पूर्ण नहीं समझा जा सकता ( ३२)। ___ सप्तपदी के पूर्व और पाणिग्रहण के पश्चात् यदि वर में कोई जाति-दोष मालूम हो जाय या वर दुराचारी विदित हो तो कन्या का पिता उसे किसी दूसरे वर को विवाह सकता है ( ३३)। इस विषय में कुछ मतभेद जान पड़ता है क्योंकि एक श्लोक में शब्द पतिसंग से पहले लिखा है (३४)। जैन-नीति के अनुसार एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाह कर सकता है अर्थात् एक स्त्री की उपस्थिति में दूसरी स्त्री से विवाह कर सकता है ( ३५)। विवाह के पश्चात् सात दिन तक वर और कन्या को ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना चाहिए । पुनः किसी तीर्थ क्षेत्र की यात्रा करके किसी दूसरे स्थान पर परस्पर विहार करें और भोग-विलास ( honey moon ) में अपना समय बितावें ( ३६ )। (३०) (३१) (३२) ० अ० ११ " " " " " श्लो० ८२ । ८३। " १० १७४ । (३४) " " , ( ३६ ) आदिपुराण अ. ३८ " १७६ व ११७ व १९६ व २०४ १३१-१३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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