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________________ अथवा अविवाहित हो घर से निकाल दे और न्यायालय के द्वारा उससे पुत्रत्व सम्बन्ध छोड़ दे (४६)। फिर उसका कोई अधिकार शेष नहीं रहेगा (४७)। इससे यह प्रकट है कि जैन-लॉ में पुत्रत्व तोड़ाने का (declarator's *) मुकदमा हो सकता है। उस मुकदमे का फैसला करते समय प्राकृतिक न्याय को लक्ष्य रक्खा जायगा। अहनीति के शब्द इस विषय में इतने विशाल हैं कि उसमें औरस पुत्र भी आ जाता है (४८)। ___ यदि दत्तक पुत्र माता पिता की प्रेमपूर्वक सेवा करता है और उनका आज्ञाकारी है तो वह औरस के समतुल्य ही समझा जायगा (४६)। यदि दत्तक लेने के पश्चात् औरस पुत्र उत्पन्न हो जाय तो दत्तक को चतुर्थ भाग सम्पत्ति का देकर पृथक कर देना चाहिए (५०)। परन्तु यह नियम तब ही लागू होगा जब वह पुत्र पिता की सवर्णा स्त्री से उत्पन्न हो। असवर्णा स्त्री की सन्तान केवल गुज़ारे की अधिकारी है दाय भाग की अधिकारी नहीं है (५१)। परन्तु यह विषय कुछ अस्पष्ट है क्योंकि अनुमानत: यहाँ असवर्णा शब्द का अर्थ शूद्रा स्त्री का है। क्योंकि जैन नीति में उच्च जाति के पुरुष की संतान, जो शूद्र स्त्री से हो, गुज़ारे मात्र की अधिकारी (४६) भद्० १२-१४; वर्ध०२५-२६; अर्ह० ८६-८ । (४७) , ५४;" , २७ ,, ८८ । * Declaration--सूचना, घोषणा। (४८) अहं० ८६-८८ और ६५ । (४६) , ५८ ।। (५०) भद्र० १३-१४; वर्ध० ५-६; अहं ० ६७-६८ । रुषभ ब० चुन्नीलाल अम्बूशेठ १६ बम्बई ३४७ । (११) अहनीति ६६; वर्ध० ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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