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________________ वह भी अनुमानतः यथेष्ट माना जाय । हिन्दू-लॉ के अनुसार पुत्र के माता पिता के अतिरिक्त और कोई उसका सम्बन्धी गोद नहीं दे सकता । परन्तु जैन-ला में ऐसा कोई प्रतिबन्धक नियम नहीं है । जैननीति के अनुकूल अनाथ भी गोद लिया जा सकता है (४०) । यदि पुत्र वयस्प्राप्त ( बालिग़ ) हो तो उसकी सम्मति वा छोटी अवस्था में उसके किसी सम्बन्धी की सम्मति भी पर्याप्त होगी (४१) । यदि माता और कुटुम्बी जन सहमत हो तो पुत्र गोद दिया जा सकता है (४२) । जब कोई विधवा गोद ले तो उस विधवा को चाहिए कि सर्व सम्पति का भार अपने दत्तक पुत्र को सौंप दे और स्वयं धर्म-कार्य में संलग्न हो जाय ( ४३ ) । दत्तक पुत्र लेने का परिणाम माता दत्तक पुत्र औरस पुत्र के समान ही होता है ( ४४ ) । पिता के जीवन पर्यन्त दत्तक पुत्र को कोई अधिकार उनकी और पैतामहिक (मौरूसी अर्थात् बाबा की ) सम्पत्ति को बेचने वा गिरवी रखने का नहीं है ( ४५ ) । यदि दत्तक पुत्र अयोग्य ( कुचलन ) हो या सदाचार के नियमों के विरुद्ध कार्य करने लगे या धर्म-विरुद्ध हो जाय और किसी प्रकार न माने, तो उसे न्यायालय द्वारा चाहे वह विवाहित हो पुरुषोत्तम ब० बेनीचन्द (४०) गौड़ का हिन्दू कोड द्वि० वृ० ३६७ | २३ बम्बई ला रिपोर्टर २२७ = ६१ इंडि० के० ४६२ । ( ४१ ) मानकचन्द ब० मुन्नालाल १५ पञ्जाब २० १६०६= ४ इंडि० . के० ८४४ । ( २ ) अशरफी कुँअर ब० रूपचन्द ३० इला० १६७ । ( ४३ ) भद्र० ५५ और ६६ । (४४) श्र० ५८ | (४५) भद्र० ६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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