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और उसके बाद औरस पुत्र उत्पन्न हो तो औरस पुत्र उसके समान अधिकार का भागी है ॥ ६८॥
औरसो दत्तकश्चैव मुख्यौ क्रोत: सहोदरः । दौहित्रश्चेति कथिताः पञ्चपुत्रा जिनागमे ॥ ६ ॥
अर्थ-औरस और दत्तक यही दोनों मुख्य पुत्र होते हैं; मोल का लिया, सहोदर, दोहिता यह गौण हैं यही पाँच प्रकार के पुत्र हैं जो जिनागम में कहे हैं ॥ ६ ॥
धर्मपन्यां समुत्पन्न औरसो दत्तकस्तु सः । यो दत्तो मातृपितृभ्यां प्रीत्या यदि कुटुम्बजः ॥ ७० ॥ क्रयक्रोतो भवेत्क्रीतो लघुभ्राता च सोदरः । सौतः सुतोद्भवश्चेमे पुत्रा दायहराः स्मृताः ॥ ७१ ॥
अर्थ--जो अपनी धर्मपत्नी से उत्पन्न हुआ हो वह औरस कहलाता है; और जो अपने कुटुम्ब में उत्पन्न हुआ हो और उसके माता पिता ने प्रेमपूर्वक दे दिया हो वह दत्तक पुत्र कहलाता है। जो मूल्य देकर लिया हो वह क्रोत है। छोटा भाई सहोदर है। पुत्री का पुत्र सैन्त (दौहित्र ) है। ये पाँच प्रकार के पुत्र उत्तराधिकारी (धन के भागीदार ) कहाते हैं ।। ७०-७१ ॥
पौनर्भवश्च कानीनः प्रच्छन्नः क्षेत्रजस्तथा । कृत्रिमश्चोपविद्धश्च दत्तश्चैव सहोटजः ।। ७२ ॥ अष्टावमी पुत्रकल्पा जैने दायहरा नहि । मतान्तरीयशास्त्रेषु कल्पिता: स्वार्थसिद्धये ।। ७३ ।।
अर्थ--ऐसी स्त्री का पुत्र जिसका दूसरा विवाह हुआ हो, कन्या का पुत्र, छिनाले का पुत्र, नियोग से पैदा हुआ पुत्र ( क्षेत्रज), जिसे लेकर पाला हो ( कृत्रिम ), त्यागा हुआ बालक, जो स्वय आ गया हो, माता के साथ ( विवाह के पहले के गर्भ के फल-स्वरूप)
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