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मृते पितरि तत्पुत्रैः कार्य तेषां हि पालनम् । निबंधश्च तथा कार्यस्तातं येन स्मरेद्धि सः ॥ ४३ ।।
अर्थ-तीन (उच्च) वर्णो के पुरुषों के पास बैठी हुई शूद्र वर्ण की स्त्री से जो पुत्र उत्पन्न हो उनको पिता अपने जीवन-काल में जो कुछ दे उसके वह निश्चय मालिक होंगे। पिता के मरे पीछे उक्त दासीपुत्रों के निर्वाह के लिए बन्दोबस्त कर देना चाहिए जिससे कि वह पिता को याद रक्खे ॥४२-४३॥
शूद्रस्य स्त्री भवेच्छूद्रा नान्या तज्जातसूनवः । यावन्तस्तेऽखिला नूनं भवेयुः समभागिनः ॥४४॥
अर्थ--शूद्र पुरुष की स्त्री शूद्रा होती है अन्य वर्ण की नहीं होती। उस स्त्री के पुत्र पिता के धन में बराबर भाग के अधिकारी होंगे ॥ ४४ ॥
दास्या जातोऽपि शूद्रेण भागभाक पितुरिच्छया । मृते तातेऽर्धभागी स्यादूढाजो भ्रातृभागतः ।। ४५ ॥
अर्थ-शूद्र से दासी के पेट से जो पुत्र जन्मे उसको पिता के धन का पिता के इच्छानुसार भाग मिलता है। और पिता के मरने के बाद वह विवाहिता बीबी के पुत्र से आधा भाग पाने का अधिकारी होता है ॥४५॥
जीवनाशाविनिर्मुक्तः पुत्रयुक्तोऽथवा परः । सपत्नोकः स्वरक्षार्थमधिकारपदे नरम् ॥४६॥ दत्त्वा लेख सनामाङ्क राजाज्ञासाक्षिसंयुतम् । कुलीनं धनिनं मान्यं स्थापयेत् स्रोमनोऽनुगम् ॥४७॥ प्राप्याधिकारं पुरुषः परासौ गृहनायके । स्वामिना स्थापितं द्रव्य भक्षयेद्वा विनाशयेत् ॥४८॥
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