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अर्थ-बाँट के पश्चात् पिता मर जावे और फिर एक और भाई जन्मे जो बाँट के वक्त पेट में था तो वह जायदाद में आमदनी व खर्च का हिसाब लगाकर भाग पाता है !! ३७ ।।
ब्राह्मणस्य चतुर्वीः स्त्रियः सन्ति तदा वसु । विभज्य दशधा तज्जान चतुखिर शभागिनः ॥ ३८॥
अर्थ-यदि किसी ब्राह्मण की चार स्त्री चार वर्ण की हो तो उसके धन के १० भाग करने चाहिएँ और उनमें से ब्राह्मणी के पुत्र को ४ क्षत्रिया के पुत्र को ३ वैश्याणी के पुत्र को २ भाग देने चाहिएँ ॥३८॥ कुर्यात्पिता वशिष्ठं तु भागं धर्मे नियोजयेत् । शूद्राजातो न भागार्हो भोजनांशुकर्मतरा ॥ ३६ ।।
अर्थ-शेष का एक भाग धर्म-कार्य में लगा देना चाहिए । शुद्रा स्त्री का पुत्र रोटी कपड़े के अतिरिक्त भाग नहीं पा सकता है ॥३।।
क्षत्राज्जातः सवर्णायामर्धभागी विशात्मजात् । जातस्तुयींशभागी स्याच्छूद्रोत्पन्नोऽनवस्त्रभाक ॥४०।।
अर्थ-क्षत्रिय पिता के क्षत्रिय स्त्री के पुत्र को पिता का आधा और वैश्य स्त्री के पुत्र को चौथाई धन मिलेगा। उसका शूद्रा स्त्री से उत्पन्न हुआ पुत्र केवल भोजन और वस्त्र का ही अधिकारी होगा॥४०॥
वैश्याज्जातः सवर्णायां पुत्रः सर्वपतिर्भवेत् ।। शूद्राजातो न दायादो योग्यो भोजनवाससाम् ॥४१॥
अर्थ-वैश्य पिता का सवर्णा स्त्री का पुत्र पिता का सर्वधन लेता है। उसका शूद्रा स्त्री का पुत्र वारिस नहीं है, अस्तु वह केवल भोजन वस्त्र का अधिकारी है ॥४१॥
वर्णत्रये यदा दासीवर्णशूद्रात्मजो भवेत् । जीवत्तातेत यत्तस्मै दत्तं तत्तस्य निश्चतम् ।। ४२ ।।
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