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________________ अर्थ-जिस मनुष्य के केवल एक कन्या हो और कुछ सन्तान न हो तो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके धन के मालिक पुत्रीदोहिते होंगे ॥ ३१ ॥ आत्मैव जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा। तस्यामात्मनि तिष्ठत्यां कथमन्यो धनं हरेत् ॥ ३२ ॥ (देखो भद्रबाहुसंहिता २६ ) ॥ ३२ ।। गृह्णाति जननी द्रव्यं मृता च यदि कन्यका । पितृद्रव्यमशेष हि दौहित्रः सुतरां हरेत् ॥ ३३ ॥ अर्थ-ब्याही हुई कन्या माता का द्रव्य पाती है, इसलिए उसका पुत्र (अर्थात् दोहिता) उसके पिता का द्रव्य लेता है ।।३३।। पौत्रदौहित्रयोर्मध्ये भेदोऽस्ति न हि कश्चन । तयोर्देहेन सम्बन्ध पित्रोदेहस्य सर्वथा ।। ३४ ॥ अर्थ-पौत्र और दोहिता (कन्या का पुत्र) में कुछ भेद नहीं है। इन दोनों के शरीरों में माता पिता के शरीर का सम्बन्ध है ॥३४॥ विवाहिता च या कन्या चेन्मृताऽपत्यवर्जिता । तदा तदद्युम्नजातस्याधिपतिस्तत्पतिर्भवेत् ।। ३५ ।। अर्थ--व्याही हुई कन्या जो सन्तान बिना मर जावे तो उसके धन का मालिक उसका पति है ॥ ३५ ॥ विभागोत्तरजातस्तु पुत्रः पित्रंशभाग भवेत् नापरेभ्यस्तु भ्रातृभ्यो विभक्तेभ्योऽशमाप्नुयात् ।। ३६ ॥ अर्थ-बाँट हो जाने के पश्चात् जो पुत्र उत्पन्न हो वह पिता का हिस्सा पाता है। और अपने जुदे भाइयों से हिस्सा नहीं पा सकता है ॥ ३६ ॥ पितुरूवं विभक्तेषु पुत्रेषु यदि सोदरः । जायते तद्विभागः स्यादायव्ययविशोधितात् ।। ३७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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