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________________ जेठा भायरिहा सा सा या कुटुंब सुपालेई । पुत्रो कुटुंबजेो वा मज्जोला: दुसुसंकिङ बण्णो ॥ १७ ॥ तहवि प्रभावे दोहिद तस्स अहावे हि गोदीय । तस्स अहावे देउर सतवारिस प्प माण्य ं य ं ॥ १८ ॥ अर्थ- जब कोई मनुष्य लापता हो जाय या मर जाय या वातादि रोग से ग्रस्त ( बावला ) हो जाय तब क्षेत्र, मकान, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद की मालिक उसकी ज्येष्ठ भार्या, जो कुटुम्ब का पालन करेगी, होगी । उसके अभाव में पुत्र, फिर सवर्ण माता-पिता से उत्पन्न भतीजा, इनके भी प्रभाव में दोहिता, उसके प्रभाव में गोत्री, ( यह भी नहीं तो ) भर्ता का छोटा भाई सात वर्ष की वय का ।। १६-१८ ॥ नोट-भर्ता के सात वर्ष की उम्र के छोटे भाई का भाव ऐसे बच्चे से है जो पति के छोटे भाई के सदृश है और जिसको मृतक पुत्र की वधू दत्तक बनावे ॥ बूढं वा अब्बूढे गिगाहिया पंचजण सक्खी । जो एगुद्धरेहिय कमदा भूभीदु पुब्बणट्ठाई ॥ १८ ॥ तुरियं भायं दिण्णय लहदिय अयोहु सब्बस्स । यि जय धणं जं विदु यिबदन्त्र मघादए इतं इव्वं ॥ २० ॥ दायादे दिज्जई विज्जालद्धं धणं जंहि । 可 जो व्यक्ति पूर्व गई जई दिय धण जं बिहु भूसणवत्यादि यं व जं अर्थ-विवाहित हो अथवा अविवाहित कैसा पञ्चजनों की साक्षी से ( गोद) लेना चाहिए । हुई ज़मीन को फिर अपने पराक्रम से प्राप्त करे चतुर्थांश मिलेगा । शेष और दायाद पावेंगे । निज द्रव्य समझके, और बिदून उसको बाधा पहुँचाये या कम तो उसको उसका पिता के द्रव्य को Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रणं ॥ २१ ॥ ही हो उसको www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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