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औरसो दत्तको वाऽपि कुर्यात्कर्म कुलागतम् । विशेषं तु न कुर्याद्व मातुराज्ञां बिना सुधीः ।। १८ ।। शक्तश्चैन्मातृभक्तोऽपि विनयी सत्यवाक्शमी । सर्वस्वतिहरो मानी विद्याध्ययनतत्परः ॥ १६ ॥
अर्थ-औरस तथा दत्तक पुत्र माता की आज्ञा के अनुकूल चलनेवाला, योग्य, शान्तिवान्, सत्यवक्ता, विनयवान, मातृभक्त, विद्याध्ययन-तत्पर इत्यादि गुण-युक्त हो तो भी कुलागत व्यवहार के व्यतिरिक्त विशेष कार्य माता की आज्ञा बिना नहीं कर सकता है ।। १८-१६॥
गृहीतदत्तक: स्वीयं जीवितप्राप्तसंशयः । परो वा कृतसल्लेखं दत्वा स्वगृहसाधने ॥२०॥ आपौगंडदशौं बन्धुभूपाधिकृतिसाक्षिकम् । स्वयं नियोजयेत्सद्यः प्रायाभूयः परासुता ॥ २१ ॥ प्राप्ताधिकारः पुरुषः प्रतिकूलो भवेद्यदि । मृतपत्नी तदादाय लेखभर्तृकृत ततः ॥ २२ ।। स्वयंकुलागत चान्यनरैः रीतिं प्रचालयेत् । पतिस्थापितसर्वस्व रक्षणीय प्रयत्नतः ॥ २३ ॥
अर्थ-यदि किसी व्यक्ति ने पुत्र गोद लिया है और उसको अपनी ज़िन्दगी का भरोसा नहीं है तो उसको चाहिए कि वह अपने खान्दान की रक्षा की ग़रज़ से लेख द्वारा किसी व्यक्ति को अपनी जायदाद का प्रबन्धकर्ता नियत कर दे ॥ २० ॥
बिरादरी के लोगों और राजा के समक्ष दस्तावेज़ (लेख) लिख देने के पश्चात अपनी जायदाद की आमदनी उसके सपुर्द कर दे; फिर यदि वह मर जावे और वह रक्षक उसकी विधवा के प्रतिकूल हो जावे तो वह विधवा उसको हटाकर उस लेख के अनुसार जायदाद
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