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________________ __ अर्थ-जिसको रुपया देकर मोल लिया हो वह क्रोत है, ऐसा बुद्धिमानों का कथन है। जो लड़के का लड़का अर्थात् पोता हो वह सौत है, और माँ-जाये छोटे भाई का नाम सहोदर है ।। ८० ॥ मातृपितृपरित्यक्तो दुःखितोऽस्मितरां तव । पुत्रो भवामीति वदन विजैरुपनतः स्मृतः ।। ८१ ।। अर्थ-जिसको माँ-बाप ने छोड़ दिया हो और जो दुःखी फिरता हुआ आकर यह कहे कि "मैं पुत्र होता हूँ" उसको बुद्धिमान उपनत बताते हैं ।। ८१ ॥ मृतपित्रादिकः पुत्रः समः कृत्रिम ईरितः । पुत्रभेदा इमे प्रोक्ता मुख्यगौणेतरादिकाः ।। ८२ ।। अर्थ-कृत्रिम वह पुत्र होता है जिसके माता-पिता मर गये हों और जो (अपने) पुत्र के सदृश हो। इस प्रकार मुख्य, गौण और अन्य पुत्रों की श्रेणी है ।। ८२॥ तत्राद्यौ हि स्मृता मुख्यौ गौणाः क्रोतादयस्त्रयः । तथैवोपनताद्याश्च पुत्रकल्पा न पिण्डदाः ॥ ८३ ।। अर्थ-इनमें से प्रथम के दो ( अर्थात् औरस और दत्तक ) मुख्य हैं। फिर तीन ( अर्थात् क्रोत, सौत, सहोदर ) गौण हैं, और उपनत और कृत्रिम की गिनती लड़कों में होती है परन्तु वे नस्ल नहीं चला सकते हैं ।। ८३ ।। मुक्त्युपायोद्यतश्चैकोऽविभक्तेषु च भ्रातृषु । स्त्रीधनं तु परित्यज्य विभजेरन् समं धनम् ।। ८४ ॥ अर्थ-यदि विभाग के पूर्व ही कोई भाई मुक्ति प्राप्त करने के निमित्त साधु हो गया हो तो स्त्री-धन को छोड़कर सम्पत्ति में सबके बराबर भाग लगाने चाहिएँ ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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