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________________ ७०५ सूक्ति-माला से भोजन करे ? और किस प्रकार से बोले ? जिससे उसे पापकम का बन्धन न हो। -यत्नपूर्वक चले, यत्नपूर्वक खड़ा होवे, यत्नपूर्वक बैठे, यत्नपूर्वक सोवे, यत्नपूर्वक भोजन करता हुआ और भाषण करता हुआ पाप-कर्म को नहीं बाँधता। सव्वभूयप्पभूअस्स, सम्मं भूयाइ पासो। पिहियासवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधइ ॥६॥ -अ०४, पत्र १५६-२ -जो सब जीवों को अपने समान समझते हैं, जो जगत को समभाव से देखते हैं, कर्मों के आने के मार्ग को जिसने रोक दिया हो और जो इन्द्रियों का दमन करने वाला हो, उसे पापकर्म का बंधन नहीं होता। पढमं नाणं तो दया, एवं चिट्ठइ सव्व संजए । अन्नाणी किं काही ? किं वा नाही सेयपावगं ॥१०॥ -अ० ४, पत्र १५७-२ -पहले ज्ञान, उसके बाद दया । इसी प्रकार से सब संयत वर्ग (साधु) स्थित है। अज्ञानी क्या करेगा ? और पुण्य-पाप के मार्ग को वह क्या जानेगा। (१२) जो जीवे वि न याणेइ, अजीवे वि न याणइ । जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो नाहीइ संजमं ॥१२॥ ---अ०४, पत्र १५७-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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