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सूक्ति-माला
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असुद्ध २६, श्रवलोवोत्ति ३०, अविय तस्स एयाणि एवभादीणि नामधे - ज्जाणि होति तीसं सावज्जस्स वइ जोगस्स अणे गाईं ।
- पत्र २६-२ उस ( मृषावाद ) के गुणनिष्पन्न ३० नाम हैं जैसे १ अलीक २ शठम् ( शठस्य- मायिनः कर्मत्वात् ), ३ अनार्यम्, ४ मायामृषा, ५ असत्क, ६ कूट कपटाऽवस्तुकञ्ज ( परवञ्चनार्थं न्यूना - धिकभाषणं कपटं भाषाविपर्ययकरणं अविद्यमानं वस्तु-अभिधेयोऽर्थो यत्र तद्वस्तु, पदत्रयस्याप्ये तस्य कथञ्जित्समानार्थत्वेनैकतमस्यैव गुणनादिमेकं नाम ), ७ निरर्थकापार्थक (निष्प्रयोजन होने से तथा सत्यहीन होने से ), ८ विद्वेष गर्हणीय (विद्वेष तथा निन्दा का कारण होने से ) ९ अनृजुकम् ( कुटिल होने से ) १० कल्कना ( मायामय होने से ), ११ वञ्चना ( ठगने का कारण होने से ), १२ मिथ्या पश्चात्कृतम् ( झूठ समझ कर न्यायवादी उसे पीछा कर देते हैं ), १३ सातिस्तु ( अविश्वासकारक होने से उसे साति कहते हैं ) १४ अपच्छन्नम् ( अपने दोष को व परगुणों के ढक देने कारण यह 'अपच्छन्न' है, १५ उत्कूल १६ आर्त, १७ अभ्याख्यान, १८ किल्विष, १९ बलय, २० गहन २१ मन्मन, २२ नूम ( सत्य को ढकनेवाला ), २३ निकृति २४ अप्रत्यय, २५ असमय, २६ असत्य सन्धत्व, २७ विपक्ष, २८ अपधीक - आज्ञातिग, २९ उपध्यशुद्ध, ३० अवलोप ।
उस मृषावाद के इस प्रकार ये तीस नाम हैं जो मृषावाद सावद्य सपाप और अलीक है तथा वचन का व्यापार है, उसके ऐसे अनेक नाम है ।
(१८)
तस्स य णामाणि गोन्नाणि होंति तीसं, तं जहा चोरिक १, परहर्ड २, दत्तं ३, कूरिकर्ड ४, परलाभो ५, संजमो ६, परधरांमिगेही ७.
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