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सूक्ति-माला -बल-वीर्य पुनः-पुनः दुःखावास है। प्राणी बलवीर्य का जैसे-जैसे उपयोग करता है, वैसे-वैसे अशुभ होता है । मोक्ष की ओर से जाने वाले मार्ग सम्यक् ज्ञान, दर्शन और तप हैं। इन्हें ग्रहण कर पंडित मुक्ति का उद्योग करे ।
(३२ ) पाणेय णाइवाएजा, अदिन्नं पियणादए । सादियं ण मुसं बूया, एस धम्मे सीमत्रो ॥१६॥
-पृष्ठ ४२ -प्राणियों के प्राणों को न हरे, बिना दी हुई कोई भी वस्तु न ले, कपट पूर्ण झूठ न बोले-आत्मजयी पुरुषों का यही धर्म है।
(३३ ) कडं च कजमाणं च, श्रागमिस्सं च पावगं । सव्वं तं णाणुजाणन्ति, पायगुत्ता जिइंदिया ॥२१॥
-पृष्ठ ४२ -आत्मगुप्त जितेन्द्रिय पुरुष किसी द्वारा किये गये, किये जाते हुए तथा किये जाने वाले पाप-कर्म का अनुमोदन नहीं करता।
तेसि पि न तवो सुद्धो, निक्खन्ता जे महाकुला । जं ने वन्ने वियाणन्ति, न सिलोगं पव्वे जए ॥२४॥
-पृष्ठ ४३ -जो कीर्ति आदि की कामना से तप करते हैं, उनका तप शुद्ध नहीं है, भले ही उच्च कुल में प्रव्रज्या हुई हो। जिसे दूसरे न जाने वह सच्चा तप है । तपस्वी आत्मश्लाघा न करे ।
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