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________________ सूक्ति-माला ( १ ) जैन आगमों में स्थल-स्थल पर 'यावत्' करके समवसरण में भगवान् द्वारा धर्मकथा कहने का उल्लेख आता है । उस धर्मकथा का पूरा पाठ ('यावत्' का वर्णक ) औपपातिक सूत्र सटीक ( सूत्र ३४ पत्र १४८ - १५५ ) में आता है । पाठकों की जानकारी के लिए हम यहाँ मूल पाठ और उसका अर्थ दे रहे हैं । भगवान् अपने समवसरण में अर्द्धमागधी ( लोकभाषा ) में भाषण करते थे और उनकी भाषा की यह विशेषता थी कि जिन-की वह भाषा नहीं भी होती, वे भी उसे समझते थे । उसमें सभी - चाहे वह आर्य हो या अनार्य- -जा सकते थे । ― अस्थि लोए त्थि अलोए एवं जीवा जीवा बंधे मोक्खे पुराणे पावे आसवे संवरे वेयणा खिज्जरा अरिहंता चक्कवही बलदेवा वासुदेवा नरका भोरइया तिरिक्खजोखिना तिरिक्खजोगिणी माया पिया रिसी देवा देवला सिद्धी सिद्धा परिणिव्वाणं परिशिष्या अस्थि पाणाइवाए मुसावा दिरणादाणे मेहुणे परिग्गहे अस्थि कोहे माणे माया लोभ जाव मिच्छाद सण सल्ले | ग्रत्थि पाणइवायवेरमेणे मुसावायवेरमाणे श्रदिरणादाणवेरमणे मेहुणवेरमणे परिग्गहवेरमणे जाव मिच्छादंसण सल्ल विवेगे सव्वं अस्थिभावं स्थित्ति वयति, सव्वं रात्थिभावं रात्थित्ति वयति, सुचिर कम्मा सुचिणफला भवंति, दुचिरणा कम्मा दुचिरणफला भवंति, फुसइ पुरणपावे, पच्चायंति जीवा, सफले कल्लाएपावए । धम्म-माइक्खइ - इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलए संसुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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