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सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं यि जाणइ सोच्चा, जं छेयं तं समायरे ॥५॥
—दशवैकालिकसूत्र, अ० ७, गा०८ -सुनकर ही कल्याण का मार्ग जाना जाता है। सुनकर ही पाप का मार्ग जाना जाता है। दोनों ही मार्ग सुनकर जाने जाते हैं। बुद्धिमान् साधक का कर्तव्य है कि पहले श्रवण करे और फिर अपने को जो श्रेय मालूम हो, उसका आचरण करे ।
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