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श्रीमदर्हते नमः जगत्पूज्य श्री विजयधर्मसूरि गुरुदेवेभ्यो नमः तीर्थकर महावीर
भाग २
तीर्थस्थापना
हम पिछले भाग में यह बता चुके हैं कि, भगवान् ने किस प्रकार इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मणों की शंकाओं का निवारण किया और किस प्रकार वैदिक धर्मावलम्बी उन महापंडितों ने श्रमण-धर्म स्वीकार किया। इस प्रकार उत्तम कुल में उत्पन्न, महाप्रज्ञ, संवेगप्राप्त ये प्रसिद्ध ११ विद्वान् भगवान् महावीर के मूल शिष्य हुए।'
पिछले भाग में ही हम सविस्तार आर्य चन्दना का उल्लेख कर आये हैं। कौशाम्बी में उसने आकाश में आते-जाते हुए देवताओं को देखा।
१-महाकुलाः महाप्राज्ञाः संविग्ना विश्ववंदिता । एकादशापि तेऽभूवन्मूलशिष्या जगद्गुरो ।।
~~~~त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ५, पत्र ७०-१ २-तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २३७-२४२
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