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________________ तीर्थंकर महावीर दीघनिकाय में कहा गया है कि जब तक ये सात गुण वैशाली वालों के पास रहेंगे, वे पराजित नहीं होंगे। उन सात गुणों में यह एक देवपूजा भी है । ५२४ इस वैशाली के कुछ देवमन्दिरों के उल्लेख बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलते हैं : १ चापाल चैत्य, २ उदेन चैत्य, ३ गोतमक चैत्य, ४ सत्तम्बक चैत्य, ५ बहुपुत्ती चैत्र्त्य, ६ सारंदद चैत्य इनमें चापाल' और सारंदद चैर्त्य' यक्षायतन थे । उदेन और गोतमक 'वृक्ष- चैत्य थे" और सत्तम्बक चैत्य' में पहले किसी देवता की प्रतिमा थी । बहुपुत्तीय चैत्य बुद्ध - पूर्व का पूजास्थान था । टीकाकारों ने लिखा है कि वहाँ न्यग्रोध का वृक्ष था । उसमें बहुत-सी शाखाएँ थीं । लोग पुत्र- प्राति के लिए उस देवस्थान की पूजा किया करते थे ।" बौद्ध साहित्य इस बहुपुत्तीय चैत्य के सम्बंध में अधिक जानकारी देने में असमर्थ है । न्यग्रोध का अर्थ 'वट' होता है ।" जैन ग्रन्थों में वर यक्ष का १३ १- वही, पृष्ठ ११६ । २ - दीघनिकाय पालि भाग २, पृष्ठ ८४ ३ - वही ६२ ४- - वही 27 Jain Education International 21 "" "" ५- वही, ६ - वही ७ - वही ----- - डिक्शनरी भाव पाली प्रापरनेम्स, भाग १, पृष्ठ ६६२ ६ -- वही, भाग २, ११०८ १०- वहीं, भाग १, " ३८१ ११ - वही, भाग २, १०१० १२ - वही, भाग २, २७३ १३ - न्यग्रोधस्तु बहुपात् स्याद्, बटो वैश्रवणालयः " " ६२ " ६२ ६२. ९२ 17 "3 " " " " " 99 99 " - अभिधानचिंतामणि सटोक, भूमिकांड, श्लोक १६८ पृष्ठ ४५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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