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तीर्थकर - महावीर
तैल ले आयी; पर हरिणेगमेषी ने दैव-शक्ति से तैलपात्र ही तोड़ दिया । इस प्रकार वह तीन पात्र ले आयी और हरिणेगमेत्री उनको तोड़ता रहा । इतने पर भी सुलसा की भावना में कोई अंतर न आया जान हरिणेगमेषी ने प्रसन्न होकर ३२ गोलियाँ दीं और कहा कि एक गोली खाना इससे तुम्हें एक पुत्र होगा । सुलसा ने सोचा कि ३२ बार गोली खाने से ३२ चार पुत्र प्रसव का कष्ट उठाना पड़ेगा । अतः यदि सब गोली एक साथ ही खा जायें तो ३२ लक्षणों वाला पुत्र होगा । ऐसा विचार कर सुलसा ने कुल गोलियाँ एक साथ खा लीं। इससे उसके गर्भ में ३२ पुत्र आये । गर्भ में इतने पुत्र आने से उसे भयंकर पीड़ा हुई । कायोत्सर्ग कर पुनः सुलसा ने हरिणेगमेषी का आह्वान किया । हरिणेगमेषी ने अपने देवबल से सुलसा की पीड़ा तो दूर कर दी पर कहा कि, ये सभी बच्चे समान आयुष्य वाले होंगे ।
कालान्तर में सुलसा के ये ३२ पुत्र श्रेणिक के अंगरक्षक बने । श्रेणिक जब चेल्लणा का अपहरण करने गया था, उसमें ये सुलसा के ये ३२ पुत्र मारे गये ।
एक बार अंबड जब राजगृह आ रहा था, तो भगवान् ने सुलसा को धर्मलाभ कहलाया । सुलसा के धर्म की परीक्षा लेने के लिए अंबड ने नाना प्रपंच रचे पर सुलसा उसे वंदन करने नहीं गयी । अंत में पाँचवें दिन मुलसा के घर आकर अंबड ने भगवान् का संदेश दिया । यह सुलसा मृत्यु के समय भगवान् महावीर का अतः वह स्वर्ग गयी और वहाँ से च्यवकर वह अगली तीर्थङ्कर होगी।"
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१- ठाणमिसूत्र ठा० उ० ३ सूत्र ६६१, पत्र ४५५-२ ।
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स्मरण करती रही । चौबीसी में १५ - वाँ
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