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तीर्थंकर महावीर
कुछ समय बाद, एक बार नंद मणिकार को सोलह रोगों ने एक साथ आ घेरा-श्वास, कास, ज्वर, दाह, शूल, भगंदर, अर्श, अजीर्ण, नेत्रपीड़ा, मस्तकपीड़ा, अरुचि, आँख कान की वेदना, खाज, जलोदर, और कुष्ठ । इनसे वह परीशान हो गया । उसकी चिकित्सा के लिए घोषणा की गयी ।
घोषणा को सुन कर बहुत से वैद्य, वैद्यपुत्र यावत् कुशलपुत्र हाथ में सत्यकोस ( शास्त्र कोश:- क्षुर नखरदनादि भाजनं स हस्ते गतः स्थितो येषां ते तथा, एवं सर्वत्रं ... ) कोसगपाय ( कोशक का पात्र ), शिलिका ( किराततिक्तकादितृण रुपाः प्रतत पाषाणरूपा वा शस्त्र तीक्ष करणार्थाः सिल्ली ) लेकर, गोली तथा भेजष, ओषध हाथ में लेकर अपने घर से निकले और नन्द मणिकार के घर पहुँच कर उन लोगों ने नन्द मणिकार
१ - आचारांग सूत्र सटीक श्रु० १, ०६, ३०१, सूत्र १७३ पत्र २१०-२ में १६ रोगों के नाम इस प्रकार आते हैं:
१ गंडी
हवा २ कोटी ३ रायसी ४ श्रवमारियं 1
५ काणियं ६ किमियं चेव, ७ कुणियं ८ खुज्जियं तहा ||१४|| उदरिं च पास १० मूयं च ११ सूणीयं च १२ गिलासगि । १३ वेवई १४ पीढ सपि च, १५ सिलिवयं १६ महुमेह ||१५|| सोलस ए ए रोगा, और 'कुष्ठ' शब्द पर टीका करते हुए शीलांकाचार्य ने लिखा है
'कुष्ठी' कुष्ठ मष्टादशभेदं तदस्यास्तीति कुष्ठी, अत्र सप्त महाकुष्ठानि तद्यथा— श्ररुणोदुम्बर निश्यजिह्नकपाल काकनाद पौण्डरीकदद्रु कुष्टानीति, महत्वं चैषां सर्वधात्वनु प्रवेशादसाध्य त्वाच्चेति, एकादश मुद्र कुष्ठानि, तद्यथा स्थूलारुष्क १, महाकुष्ठ २, कुकुष्ठ ३, चर्मदल ४, परिसर्प ५, विसर्प ६, सिध्म विचर्चिका ८, ७, किटिभ ६, पामा १० शतारुक ११ संज्ञानीति, सर्वाण्यप्यष्टादश...
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- पत्र २१२-२
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