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तीर्थंकर महावीर हुए कड़ाहे में उकाला और उसके रक्त और मांस से चुलनीपिता का शरीर सींचने लगा । चुलनीपिता ने उसे सहन कर लिया ।
फिर उसने दूसरे और तीसरे लड़के को भी वैसा ही किया। पर, श्रावक अपने विचार पर अडिग रहा । फिर चौथी बार उस देव ने कहा"हे अनिष्ट कामी ! यदि तू अपना व्रत भंग नहीं करता, तो तेरी माता भद्रा को घर से लाकर तेरे सामने ही उसके प्राण लूंगा, फिर उसके मांस के तीन टुकड़े करके कड़ाहे में डालूंगा और उसके रक्त तथा मांस से तेरे शरीर को सींचूँगा। इससे अत्यन्त दुःखी होकर तू मृत्यु को प्राप्त करेगा।” फिर भी चुलनीपिता निर्भय रहा। उसने तीन बार ऐसी धमकी दी।
देव के तीसरी बार ऐसा कहने पर, चुलनी पिता श्रावक विचार करने लगा--"यह पुरुष अनार्य है। इसने मेरे तीन पुत्रों का घात किया और
और अब मेरी माता का वध करना चाहता है। ऐसा विचार कर वह उठा और देव को पकड़ने चला । देवता उछल कर आकाश में चला गया और चुलनीपिता ने एक खम्भा पकड़ लिया तथा वह जोर जोर चिल्लाने लगा।
उसकी आवाज सुनकर चुलनीपिता की माता भद्रा आयी और चिल्लाने का कारण पूछने लगी । चुलनीपिता ने सारी बात माता को बतायी तो माता बोली-"कोई भी तुम्हारे पुत्रों को घर से नहीं ले आया है और न किसी ने तुम्हारे पुत्रों का वध किया है। किसी ने तुम्हारे साथ उपसर्ग किया है। कषाय के उदय से चलित चित्त होकर उसे मारने की तुम्हारी प्रवृत्ति हुई । उस घात की प्रवृत्ति ते स्थूलप्राणातिपातविरमण-व्रत
और पोषध-व्रत भंग हुआ । पोषध-व्रत में सापराध और निरपराध दोनोंके मारने का त्याग होता है। इसलिए तुम आलोचना करो, प्रतिक्रमण करो
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