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तीर्थंकर महावीर
उसी काल में श्रमण भगवान् महावीर विचरते हुए चम्पा आये । उनका आगमन सुनकर कामदेव ने सोचा - "अच्छा होगा श्रमण भगवान् महावीर जब आये हैं तो पहले उनको वंदन - नमस्कार करके लौहूँ तब पौध की पारणा करूँ । ऐसा विचार करके वह पौषधशाला से निकला और पूर्णभद्र - चैत्य में जाकर उसने शंख के समान पर्युपासना की ।
भगवान् ने परिषदा में धर्मकथा कही और उसके बाद कामदेव को सम्बोधित करके रात्रि की घटना के सम्बंध में पूछा । कामदेव ने सारी बात स्वीकार की ।
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फिर भगवान् निर्गथ-निर्गन्थियों को सम्बोधित करके कहने लगे"आर्य ! गृहस्थ-श्रावक दिव्य मानुष्य और तिर्यच - सम्बंधी उपसर्गों को सहन करके भी ध्यान निष्ठ रहते हैं । हे आर्य ! द्वादशांग गणिपिटक के धारक निर्गथियों को तो ऐसे उपसर्ग सहन करने में सर्वथा दृढ़ रहना चाहिए ।
उसके बाद कामदेव ने प्रश्न पूछे और उनका अर्थ ग्रहण किया । और,
वापस चला गया ।
कामदेव बहुत से शील-व्रत आदि से आत्मा को भावित कर बीस वर्षों तक श्रावक - पर्याय पाल, ११ प्रतिमाओं को भली भाँति स्पर्श कर, एक मास की संलेखना से आत्मा को सेवित करता हुआ, साठ भक्त अनशन द्वारा त्याग कर, आलोचना-प्रतिक्रमण करके, समाधि को प्राप्त होता हुआ काल के समय में काल करके सौधर्मकल्प में सौधर्मावितंसक महाविमान के ईशान कोण के अरुणाभ नामक विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ ।
गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा - "भगवन् ! वहाँ से कामदेव कहाँ उत्पन्न होगा ?"
भगवान् ने कहा- " हे गौतम ! चार पल्पोयम देवलोक में रहकर वह महाविदेह में सिद्ध होगा ।'
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