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श्रमण-श्रमणी
१. अकम्पित-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ ३१०३१२, ३६९ ।
२. अग्निभूति-देखिएं तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २७०२७५, ३६७ ।
३. अचलभ्राता-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ ३१३३१८, ३६९।
४. अतिमुक्तक- राजाओं वाले प्रकरण में विजय-राजा के प्रसंग में देखिए।
५. अनाथो मुनि-ये कौशाम्बी के रहनेवाले थे। इनके पिता का नाम धनसंचय था। एक बार बचपन में इनके नेत्रों में पीड़ा हुई । उससे उनको विपुल दाह उत्पन्न हुआ। उसके पश्चात् उनके कटिभाग, हृदय
और मस्तक में भयंकर वेदना उटी । वैद्यों ने उनकी चतुष्पाद चिकित्सा की पर वे सभी विफल रहे । उनके माता, पिता, पत्नी, भाई-बंधु सभी लाचार होकर रह गये। कोई उनके दुःख को न हर सका। उसी बीमारी
१-कोसंबी नाम नयरी, पुराणपुर भेयणी।।
तत्थ पासो पिया मज्झ पभूयधणसंचारो ॥ -उत्तराभ्ययन नेमिचंद्र की टीका सहित, अ० २०, श्लोक १८, पत्र २६८.२
२-'चाउप्पायं' ति चतु-पादां भिषग्भेषजातुरप्रतिचारकात्मक चतुर्भाग चतुप्टयात्मिका-वही पत्र २६९-२ ।
और चिकित्सा के प्रकार बताते हुए लिखा है कि, इतने तरह के लोग चिकित्सा करते थे-आचार्य, विद्या, मंत्र, चिकित्सक, शस्त्रकुशल, मंत्रमूलविशारद-गा० २२ ।
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