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रोइन नायपुत्त-वयणे, अप्पसमे मन्नेज्ज छपि काए । पंच य फासे महत्र्वयाई, पंचासव संवरे जे स भिक्खू ॥ : - दशवैकालिकसूत्र, अ० १०, गा० ५
जो ज्ञातपुत्र - भगवान् महावीर के प्रवचनों पर श्रद्धा रखकर छड़काय के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है, जो अहिंसा आदि पाँच महात्रतों का पूर्णरूप से पालन करता है, जो पाँच आस्त्रयों का संवरण अर्थात् निरोध करता है, वही भिक्षु है ।
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