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बौद्ध ग्रन्थों का एक भ्रामक उल्लेख
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तब, चुन्द समगुद्देस पावा में वर्षावास कर जहाँ सामगाम था और जहाँ आयुष्मान् आनन्द थे वहाँ गये | बैठ गये । बोले – “भँते ! निगण्टों में फूट० ।”
ऐसा कहने पर आयुष्मान् आनन्द बोले – “आबुस चुन्द ! यह कथा भेंट रूप है | आओ आस चुन्द ! जहाँ भगवान् हैं, वहाँ चलें । चलकर यह बात भगवान् से कहें ।"
"बहुत अच्छा" कह चुन्द ने उत्तर दिया |
तब आयुष्मान् आनन्द और चुन्द० श्रमणोद्देश जहाँ भगवान् थे वहाँ गये । एक ओर बैठे आयुष्मान् आनन्द बोले - "भंते ! चुद० ऐसा निगण्ठ नाथ पुत्र की अभी हाल में पावा में मृत्यु हुई है । उनके मरने पर कहता है- 'निगण्ठ० पावा में० ।" "
इसी से मिलती-जुलती कथाएँ दीघनिकाय के संगीतमुत्तन्त और मज्झिमनिकाय के सामगाम सुतंत में भी आती हैं ।
बौद्ध साहित्य में महावीर - निर्वाण का यह उल्लेख सर्वथा भ्रामक हैइस ओर सबसे पहले डाक्टर हरमन याकोबी का ध्यान गया और उन्होंने इस सम्बन्ध में एक लेख लिखा जिसका गुजराती- अनुवाद 'भारतीय विद्या, (हिन्दी) के सिंबी - स्मारक - अंक में छपा है ।
इस सूचना के सम्बन्ध में डाक्टर ए० एल० बाशम ने अपनी पुस्तक 'आजीवक' में लिखा है- "मेरा विचार हैं कि पाली ग्रंथों के इस संदर्भ में महावीर के पावा में निर्वाण का उल्लेख नहीं है, पर सावत्थी में गोशाला
१- दीघनिकाय ( हिन्दी अनुवाद) पासादिक मुक्त पृष्ठ २५२ २५३
२- दीघनिकाय ( हिन्दी अनुवाद ) पृष्ठ २८२
३ – मज्झिमनिकाय ( हिन्दी अनुवाद ) पृष्ठ ४४१
- पृष्ठ १७७-१६०
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