SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ तीर्थङ्कर महावीर समझ कर नहीं । वह भी दिया हुआ ही कल्पता है, बिना दिया हुआ नहीं। दिया हुआ भी वह जल हस्त, पाद, चरु एवं चमस के प्रक्षालन के लिए अथवा पीने के लिए ही कल्पता है-स्नान के लिए नहीं। इस अम्बड परिव्राजक को मगध-देश सम्बन्धी आढक प्रमाण जल ग्रहण करना कल्पता है—वह भी बहता हुआ यावत् दिया हुआ ही कल्पता है, बिना दिया हुआ नहीं। वह भी स्नान के लिए ही कल्पता है, हाथ, पैर, चरु एवं चमसा धोने के लिए नहीं और न पीने के लिए। ___ "वह अर्हन्तों और उनकी मूर्तियों को छोड़कर अन्यतीर्थिको और और उनके देवों तथा अन्यतीर्थिक परिगृहीत अर्हत-चैत्यों को वंदन नमस्कार नहीं करता।" ___ गौतम स्वामी-“हे भंते ! यह अम्बड परिव्राजक काल के अवसर में काल करके कहां जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?" ___ भगवान्- "हे गौतम ! यह अम्बड परिव्राजक अनेक प्रकार के शील, व्रत, गुण, (मिथ्यात्व) विरमण, प्रत्याख्यान, पोषधोपवास, आदि व्रतों से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ अनेक वर्षों तक श्रमणोपासकपर्याय का पालन करेगा और अंत में १ मास की संलेखना से अपनी आत्मा को मुक्त कर साठ भक्तों को अनशन से छेद कर, पाप-कर्मों की आलोचना करके, समाधि को प्राप्त करेगा। पश्चात् काल के अवसर पर काल करके ब्रह्मलोक-नामक पाँचवें देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ देवों की स्थिति १० सागरोपम की है। वहाँ अम्बड १० सागरोपम रहेगा।" __गौतम स्वामी-“हे भंते ! उस देवलोक से च्यव कर अम्बड कहाँ उत्पन्न होगा ?' भगवान्- "हे गौतम ! महाविदेह-क्षेत्र में आढ्य, उज्जवल तथा प्रशंसित, एवं वित्त-प्रसिद्ध, कुल हैं, जो कि विस्तृत एवं विपुल भवनों के अधिपति हैं, जिनके पास अनेक प्रकार के शयन, आसन एवं यान-वाहनादिक है, जो बहुत धन के स्वामी हैं; आदान-प्रदान अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy