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________________ प्राक्कथन जैनों के मूलभूत धर्मग्रंथों को 'आगम' कहते हैं। 'आगम' शब्द पर कलिकाल-सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने अभिधान-चिन्तामणि की स्वोपज्ञ-टीका ( देवकाण्ड, श्लोक १५६, पृष्ठ १०४ ) में लिखा है--- आगम्यतः आगमः और, अभिधान राजेन्द्र ( भाग २, पृष्ठ ५१ ) में वाचस्पत्यकोष का उद्धरण इस रूप में दिया गया है आ गम्-घन-प्रागतो, प्राप्तौ। उत्पत्ती सामाधुपाये च आगम्यते स्वत्वमनेन स्वत्वप्रापके क्रयप्रतिग्रहादौ।। इन आगमों की रचना कैसे हुई, यह हम इसी ग्रंथ में पृष्ठ ५ पर लिख चुके हैं। अणुयोगद्वार की टीका ( पत्र ३८-२) में मलधारी हेमचन्द्राचार्य ने आगम को प्राप्त वचनं वाऽऽगम इति कहा है। विशेषावश्यक भाष्य की टीका ( पत्र ४१६ ) में आगम में निम्नलिखित पर्याय बताये गये हैं :। श्रुत १, सूत्र २, ग्रंथ ३, सिद्धांत ४, प्रवचन ५-ऽऽझोपदेशा -ऽऽगमादीनि ७ श्रुतैकार्थिकनामानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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