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महावीर के ४१ वर्षावासों का ब्यौरेवार वर्णन लेखक ने ३५० पृष्ठों में दिया है, जिसमें बहुविधि ऐतिहासिक सामग्री का संकलन है । अन्तिम वर्षावास राजगृह में बिताकर अपापापुरी में महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया । महावीर के समकालीन राजाओं का भी लेखक ने इस भाग में सविस्तर वर्णन किया है, जिनमें श्रेणिक और कुणिक अर्थात् बिम्बसार और अजातशत्रु मुख्य थे | बिम्बसार का नाम लेखक के अनुसार 'भम्भासार' था
श्री आचार्य विजयेन्द्रसूरि का लिखा तीर्थङ्कर महावीर का यह जीवनचरित अनेक प्रकार की सूचनाओं का भण्डार है और इस रूप में उसका बहुत मूल्य है । सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य, तप और अपरिग्रह - रूपी महान आदर्शों के प्रतीक भगवान् महावीर हैं । इन महाव्रतों की अखण्ड साधना से उन्होंने जीवन का बुद्धिगम्य मार्ग निर्धारित किया था और भौतिक शरीर के प्रलोभनों से ऊपर उठकर अध्यात्म भावों की शाश्वत विजय स्थापित की थी । मन, वाणी, और कर्म की साधना उच्च अनंत जीवन के लिए कितनी दूर तक संभव है, इसका उदाहरण तीर्थंकर महावीर का जीवन है । इस गम्भीर प्रज्ञा के कारण आगमों में महावीर को दीर्घप्रज्ञ कहा गया है । ऐसे तीर्थङ्कर का चरित धन्य है ।
वासुदेवशरण अग्रवाल काशी-विश्वविद्यालय
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