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भूमिका
जैनाचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि द्वारा निर्मित उत्तम ग्रंथ 'तीर्थङ्कर महावीर' का मैं सहर्ष स्वागत करता हूँ । इस ग्रंथ का पहला भाग जिसमें ३७० पृष्ठ और कई चित्र थे, १९६० में प्रकाशित हुआ था। अब इसका दूसरा भाग जिसमें ७०० पृष्ठ हैं इतनी शीघ्र प्रकाशित हो रहा है, इससे लेखक का एकनिष्ठपरिश्रम सूचित होता है । विजयेन्द्र सूरि जी जैन-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे चलते-फिरते पुस्तकालय हैं । भारतीय विद्या के अनेक विषयों के साथ उन्हें प्रेम है । उनकी जानकारी कितनी विस्तृत है, यह उनके इन दो ग्रंथों से विदित होता है । भगवान् महावीर के अबतक जितने जीवन-चरित निकले हैं, वर्तमान ग्रंथ उनमें बहुत ही उच्चकोटि का है। इसके निर्माण में सूरि जी ने दार्घकालीन अनुसंधान कार्य के परिणाम भर दिये हैं । तीर्थङ्कर महावीर के संबंध में जैन - साहित्य में और बौद्ध साहित्य में भी जो कुछ परिचय पाया जाता है, उस सबको एक ही स्थान पर उपलब्ध कराना इस ग्रंथ को विशेषता है । महावीर का जन्म जिस प्रदेश और जिस युग में हुआ उसके संबंध की सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक सामग्री का पूरा कोश ही लेखक ने इस ग्रंथ में संग्रहीत कर दिया है। सौभाग्य से महावीर के संबंध में ऊपर के दोनों तथ्य कुछ प्रामाणिकता के साथ हमें उपलब्ध हैं । प्रथम तो यह कि, विदेह जनपद की राजधानी वैशाली ( आधुनिक बसाढ़) के निकट प्राचीन कुण्डपुर नामक स्थान में ( वर्त्तमान वासुकुण्ड ) महावीर ने जन्म लिया
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