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तीर्थंकर महावीर --अर्थात् अंबिल, नीरस जल, दुष्प्राप्य, धातु-शोषण, कामान, मंगल, शीत ये आयंबिल शब्द के समानार्थी हैं ।
इस शब्द पर टीका करते हुए औषपातिकसूत्र में आचार्य अभयदेव रसूरि ने लिखा है'आयंबिलए' त्ति आयाम्नम् ओदन कुल्माषादि
–औपपातिकसूत्र सटीक, सूत्र १९, पत्र ७५ पंचाशक की टीका में उसका विवरण इस प्रकार है
आयाममवश्रावणं अम्लं च सौवीरकं, ते एव प्रायेण व्यंजने यत्र भोजने उदन कुल्माष सक्तु प्रभृतिके तदायामाम्लं समय भाषयोच्यते —पंचाशक अभयदेवसूरि की टीका सहित, पं० ५, गा० ९, पत्र ९३-१
आवश्यक की टीका में हरिभद्रहरि ने पत्र ८५५-१ से ८५६-१ तक इस शब्द पर विशेष रूप से विचार किया है। उसमें आता है----
'एत्थ आयंबिलं च भवति आयंबिल पाउण्णं च, तत्थोदणे प्रायम्बिलं आयंबिल पाउग्गं च, आयंबिला सकूरा, जाणि कृर विहाणाणि, आयंबिलं पाउग्गं, तंदुलकणि याउ कुंडतो पीटुं पिहुगा पिट्ठपोबलियारो रालगा मंडगादि, कुम्मासा पुग्वं पाणिरण कुड्डिजति पच्छा उखलिए पोसंति, ते तिविहासराहा, मज्झिमा, थूला, ऐते आयंबिलं .......
—पत्र ८५५-१ आवश्यक-नियुक्ति-दीपिका (तृतीय विभाग ) में माणिक्यशेखर सूरि ने लिखा है
आयामोऽव श्रामणं आम्लं चतुर्थरसः ताभ्यां निर्वत्त आयामाम्लं । इदं चोपाधिभेदा त्रिधा-प्रोदनः धवल धान्य इत्यर्थः, कुल्माषाः काष्ठ द्विदल मित्यर्थः, सक्तवो लोट्ट इत्यर्थः, प्रोदनादीनधिकृत्य जीरकादियुक् करोरादि फलानि च धान्य
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