SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) भगवान् पार्श्वनाथ आर्यक्षेत्र में ही तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेव आदि ६३ शलाका पुरुष जन्म लेते रहे हैं। भगवान् महावीर के पूर्व तक के तीर्थकरों का वर्णन करते हुए 'कल्पसूत्र' में आता है सेसेहिं इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागुकुल समुप्पन्नहिं कासवगुत्तेहिं (कल्पसूत्र, सूत्र २, सुबोधिका टीका, पत्र २५) अर्थात् २१ तीर्थंकरों का जन्म इक्ष्वाकुकुल और काश्यप-गोत्र में हुआ और केवल मुनिसुव्रत और नेमिनाथ हरिवंश में जन्मे । इसी आर्यक्षेत्र में स्थित, काशी जनपद की वाराणसी नामक राजधानी में अश्वसेन नामक राजा राज्य करते थे। वे इक्ष्वाकु-वंश और काश्यप-गोत्र के थे। उनकी पत्नी का नाम वामादेवी था। फाल्गुन शुक्ला ४ की रात्रिको प्राएत नामक दशम देवलोक से च्यवकर के पुरुषादानीय' भगवान् पार्वका जीव माता वामादेवी की कुक्षि में गर्भरूप में आया। उनके गर्भ में आने पर वामादेवी ने चौदह स्वप्न देखे । वामादेवी ने महाराज से जब स्वप्नों की बात कही, तो महाराज अश्वसेन ने उत्तर दिया-"आप तीन भुवन के. स्वामी तीर्थंकर को जन्म देनेवाली है।" १ (अ) लासे अरहा 'पुरिसादाणीए' पुरुषाणां प्रधानः पुरुषोत्तम इति । अथवा समवायाङ्गवृत्तावुक्तम्- "पुरुषाणां मध्ये आदानीयः-आदेयः पुरुषादानीयः" (पत्र १४-२) [उत्तराध्ययन बृहद्वत्तौ—'पुरुषश्चासौ पुरुषाकारवर्तितया आदानीयश्च आदेयवाक्यतया पुरुषादानीयः, पुरुषती. म. ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy