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________________ (२८) ६१ नगरनिवेसं नगर बसाने ६२ ईसत्यं =थोड़े को बहुत करके का ज्ञान दिखाने की कला ६३ छरुप्पवायं तलवार की मूंठ ६४ आससिक्खं अश्व-शिक्षा बनाने की कला ६५ हत्थि सिक्खं हस्ति-शिक्षा ६६ धणुवेय्यं धनुर्वेद ६७ हिरण्णपागं, सुवन्नपागं, मणिपागं, धातुपागं हिरण्यपाक, सुवर्ण पाक, मणिपाक, धातुपाक ६८ बाहुजुद्धं, दंडजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, अद्विजुद्धं, जुद्धं, निजुद्धं, जुद्धाई जुद्धं =बाहुयुद्ध, दंडयुद्ध, मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध ६६ सुत्ताखेडं, नालियाखेडं, वट्टखेडं, धम्मखेडं चम्मखेड = सूत्रखेडं (सूत बनाने की कला), नालिका खेड (नली बनाने की कला), वर्तखेडं (गेंद खेलने की कला), धर्मखेडं, (वस्तु का स्वभाव जानने की कला) चर्मखेडं (चमड़ा बनाने की कला) ७० पत्तच्छेज्जं, कडगच्छेज्ज पत्र-छेदन, वृक्षांग विशेष छेदने की कला ७१ सजीवं, निजीवं-संजीवन, निर्जीवन ७२ सउणरूयं = शकुनरुत-(पक्षी के शब्द से) शुभाशुभ जानने की कला नायाधम्मकहा पृष्ठ २१; राजप्रनीय पत्र ३४०; औपपातिक, सूत्र ४०, पत्र १८५ तथा नंदीसूत्र (सूत्र ४२) पत्र १९४ के अतिरिक्त कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र ४४५, ४४६; कल्पसूत्र सन्देह विषौषधि टीका पत्र १२२-१२३; कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी टीका पृष्ठ २२६ तथा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार २, सूत्र ३० की टीका में भी कुछ हेर-फेर से ७२ कलाओं का उल्लेख मिलता है। आवश्यक नियुक्ति पृष्ठ ३२, श्लोक १३४-१३७ में पुरुष की केवल ३६ कलाएं गिनायी गयी हैं। आवश्यक की मलयगिरि की टीका (पूर्व भाग) में (पत्र १९५-२) में भी ३६ कलाएँ हैं। स्त्रियों की ६४ कलाओं की चर्चा श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका में (वक्षस्कार २, पत्र १३९-२, १४०-१) में इस प्रकार आयी है । १ नृत्य २ औचित्य ३ चित्र ४ वादिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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