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________________ (२३) 'हंकार', 'मकार' और 'धिक्कार' " नीति थीं । तीसरे आरे के जब चौरासी लाख पूर्व ( ८४ लाख वर्ष = १ पूर्वांग, ८४ लाख पूर्वांगं = १ पूर्व ) और नवासी पक्ष ( तीन वर्ष साढ़े आठ महीने ) शेष रहे, तब आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्रयोग आने पर, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव मरुदेवा के गर्भ में आये और नौ महीने साढ़े आठ दिन गर्भ में रहने के पश्चात्, जब चन्द्रयोग उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्थित हुआ, तब चैत्र के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन, आधी रात के समय, नाभि कुलकर के यहाँ, मरुदेवा की कुंक्षि से, आपका जन्म हुआ | आपके जंघे में 'ऋषभ' का चिह्न था, इसलिये आपका नाम ऋषभदेव पड़ा | आपके साथ ही सुमङ्गला का जन्म हुआ । E 3 पड़ा । जब भगवान् की उम्र एक वर्ष से कुछ कम थी, तभी एक दिन सौधर्मेन्द्र उनके समक्ष आया । स्वामी के समक्ष खाली हाथ न जाना चाहिये, इस विचार से वह एक गन्ना ( इक्षु) अपने साथ लेता आया । ऋषभदेव उस समय नाभिराज की गोद में बैठे थे । उन्होंने इन्द्र की भावना समझ कर इक्षु लेने के लिए हाथ बढ़ा दिया । ऋषभदेव ने इक्षु ग्रहरण किया; इसलिए सोधर्मेन्द्र ने उनके कुल का नाम 'इक्ष्वाकुवंश' " रख दिया । और, भगवान् के पूर्वज इक्षु-रस पीते थे, इसलिए उनके गोत्र का नाम 'काश्यप ४ जब भगवान् की उम्र एक वर्ष से कुछ कम थी, तब की बात है कि एक (१) ' विगविक्षेपार्थएवतस्य करणं उच्चारणं धिक्कार : अत्यन्त निन्दा करने की नीति को धिक्कार - नीति कहने हैं । - स्थानाङ्गसूत्रवृत्ति - पत्र ३६६-१ (२) त्रिषष्टिशालाका पुरुष चरित्र पर्व १, सर्ग २, श्लोक ६४७-६५३ (३) (अ) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रया वृत्ति पूर्व भाग - पत्र १२५ - २ (ब) आवश्यक सूत्र मलयगिरी की टीका पूर्व भाग - पत्र १६२ - २ (क) आवश्यक -निर्युक्ति – पृष्ठ २६, श्लोक ११६, १२० (ड) आवश्यक चू—ि पत्र १५२ " ―――― (४) आवश्यक-निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्तिः पूर्व भाग, पत्र १२५-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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