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(३४१) १३ दक्खिणकूलका-गंगा के दक्षिण किनारे पर रहने वाले . १४ उत्तरकूलका- गंगा के उत्तर किनारे पर रहने वाले १५ संखधम्मका-भोजन के पूर्व शंख बजाने वाले ताकि भोजन के
समय कोई न आये १६ कूलधमका-तट पर शब्द करके भोजन करने वाले १७ मिगलुद्धका-पशुओं का मृगया करने वाले १८ हत्थितावसा-ये लोग हाथी मार लेते थे और महीनों तक उसी
का मांस खाते थे। इनकी चर्चा सूत्रकृतांग में भी आती है। आर्द्रकुमार से इन तापसों से भी भेंट हुई थी। उनका विचार है
कि साल में एक हाथी मार कर हत्थितावस कम पाप करते हैं । १९ उद्दण्डका-दण्ड ऊपर कर के चलने वाले २० दिसापोक्खीण-चारों दिशाओं में जल छिड़क कर फल-फूल
एकत्र करने वाले। २१ वाकवासिण-वल्कलधारी २२ अंबुवासिण-पानी में रहने वाले २३ बिलवासीण-बिल (गुफाओं) में रहने वाले २४ जलवासिण-जल में रहने वाले । २५ वेलवासिण-समुद्रतट पर रहने वाले २६ रुक्खमूलिया-वृक्षों के नीचे रहने वाले २७ अंबुभक्खिण-केवल जल पीकर रहने वाले २८ वायुभक्खिण-केवल हवा पर रहने वाले २८ सेवालभक्खिण-सेवाल खा कर रहने वाले २९ मूलाहारा-केवल मूल खाने वाले ३० कंदहारा-केवल कंद खाने वाले ३१ तयाहारा-केवल वृक्ष की छाल खाने वाले ३२ पत्ताहारा-केवल पत्र खाने वाले
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