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(२६६) वहाँ पर तीन पक्ष उठ जाते हैं। पहला यह कि क्या पहले जीव उत्पन्न होता है और पीछे कर्म ? अथवा क्या पहले कर्म उत्पन्न होता है, पीछे जीव ? अथवा दोनों एक काल में ही उत्पन्न होते हैं ? ___ "पहले जीव की और उसके पीछे कर्म की उत्पत्ति होती है, यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि कर्म के पहले जीव की उत्पत्ति खर-श्रृग के समान युक्त नहीं है । और, यदि कहें कि आत्मा की उत्पत्ति निष्कारण है, तो जिसका जन्म निष्कारण है, उसका विनाश भी निष्कारण होगा।
"यदि कहें कि जीव अनादि है और निष्कारण है तथा कर्म से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है, तो उसे निष्कारए मानने पर मुक्त पुरुष को भी जन्म लेना पड़ेगा और तब तो मुक्ति में भी कोई विश्वास नहीं रह जायेगा।
"बन्धाभाव में यदि वह नित्य मुक्त होता है, तो उसका मोक्ष क्या है ? क्योंकि जिसका बन्ध नहीं होता है, उसकी मुक्ति क्या ? ____ "यह भी नहीं कह सकते कि, जीव के पहले कर्म की उत्पत्ति होती है; क्योंकि उस समय कर्ता जीव का अभाव होता है। यदि कहें कि कर्म की उत्पत्ति निष्कारण होती है, तो उसका नाश भी निष्कारण ही होगा।
'जीव और कर्म की उत्पत्ति एक काल में मानने पर, कर्तृ-कर्म-भाव युक्त नहीं हो सकता। जिस प्रकार लोक में गाय की दो सींगें एक ही काल में आती हैं और उनमें कर्तृ-कर्म भाव नहीं होता।
"यदि जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि का मान लिया जाये तो मोक्ष भी उत्पन्न नहीं होगा। नियम है कि जो अनादि है, वह अनंत होता है, जिस तरह आत्मा और आकाश का सम्बन्ध । ___"इस तरह युक्ति से वेदों में बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था नहीं घटती है। अतः तुम्हें यह शंका हो रही है। जिस रूप में तुम्हारा यह संशय मिट रहा है, अब मैं उसे कहता हूँ।
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