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________________ (२८४) . "प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम इन तीन प्रकारों से पदार्थों की सिद्धि होती है। जिनमें इन प्रमाणों की विषयता नहीं है, उनमें संशय ठीक नहीं है। - "संशयादि (संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय, निर्णय) ज्ञान के पर्याय है । वे ज्ञेय से सम्बद्ध ही होते हैं । अतः, जब सभी ज्ञेय का अभाव हो, तो संशय के लिए स्थान कहाँ है । "हे सौम्य ! तुम्हारे संशय-भाव के कारण वे पदार्थ स्थाशु-पुरुष की तरह हैं ही। और, अगर तुम्हारा मत यह है कि, स्थाणु और पुरुष का दृष्टांत असिद्ध है तो संशय का ही अभाव हो जाता है। "यह मानना ठीक नहीं है कि, सर्वाभाव में भी स्वप्न की तरह सन्देह उत्पन्न हो जाता है; क्योंकि स्वप्न स्मृति आदि निमित्त के कारण होता है । उनके अभाव में तो स्वप्न भी नहीं होता। "अद्भुत, दृष्ट, चिन्तित, श्रुत, प्रकृति-विकार, देवता, सजल प्रदेश, पुण्य और पाप ये स्वप्न के कारण है। सर्वाभाव दशा में स्वप्न भी नहीं होता है। ___ "विज्ञानमय होने से घट-विज्ञान की तरह स्वप्न 'भाव' है अथवा नैमित्तिक होने से घट की तरह स्वप्न है, क्योंकि 'अनुभूत, दृष्ट, चिन्त्य, इत्यादि उसके निमित्त बताये गये है। . ____ "सर्वाभाव की स्थिति में स्वप्न और अस्वप्न में कैसे अंतर जाना जा सकता है ? यह सच है, यह झूठ है ? गंधर्वनगर है अथवा पाटलिपुत्र ? तथ्य है या उपचार है ? कार्य है अथवा कारण है ? साध्य है अथवा साधन है ? इनका अंतर कैसे होगा और कर्ता-वक्ता और वचन-वाच्य और पर-पक्ष अथवा स्वपक्ष में क्या अंतर रहेगा ? १-गोयमा ! पंचविहे सुविणदंसणे पण्णत्ते, तंजहा-अहातच्चे, .. पयाणे, चिंता सुविणे, तव्विवरीए, अवत्तदंसणे । -भगवती सूत्र सटीक शतक १६, उद्देशः ६, सूत्र ५७८, पा १३०४-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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