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(२७४)
"यदि कर्म - तनु को नहीं मानते हैं, तो मरण - काल में स्थूल शरीर से सर्वथा विमुक्त जन्तु का भवान्तर में स्थूल शरीर ग्रहण करने में कारणभूत सूक्ष्म कार्मण्य शरीर के अतिरिक्त और क्या होगा ? इसके फलस्वरूप संसार का विच्छेद हो जायेगा ।
"और, इसका फल यह होगा कि, या तो सभी को मोक्ष प्राप्त हो जायेगा या बिना कारण सबको संसार प्राप्त हो जायेगा । और, दूसरों की क्या बातभवमुक्त सिद्धजनों का भी अकस्मात् निष्कारण संसारपात होगा । तब तो मोक्ष में भी अविश्वास !
" ( प्रश्न किया जा सकता है कि ) मूर्त (कर्म) का अमूर्त जीव से कैसे सम्बन्ध हो सकता है ? ( इसका उत्तर यह है ) हे सौम्य ! यह सम्बन्ध भी मूर्त घट का अमूर्त आकाश के साथ अथवा मूर्त अंगुलि द्रव्य का अमूर्त आकुंचन ( समेटने ) आदि क्रिया के साथ के सम्बन्ध के समान है ।
" जीव के साथ लगा हुआ, यह स्थूल भवान्तर में जीव के साथ संयुक्त कार्मा चाहिए ।
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शरीर जैसे प्रत्यक्ष है, वैसे ही शरीर को भी स्वीकार करना
"अमूर्त ( आत्मा ) का मूर्त ( कर्मन् ) के साथ उपघात ( परितापादि ) अथवा अनुग्रह (अल्हादि ) कैसे हो सकते हैं क्योंकि अमूर्त आकाश का मूर्त अग्नि ज्वालादि के साथ सम्बन्ध नहीं होता है ।' तुम्हारी इस शंका का उत्तर यह है कि, जिस प्रकार मूर्त मदिरा अथवा मूर्त औषधियोग से अमूर्त विज्ञान का उपघात और अनुग्रह होता है, उसी तरह आत्मा का कर्म के साथ होगा ।
" अथवा यह नियम नहीं है कि, संसारी जीव एक दम अमूर्त हो; क्योंकि वह तो अनादि काल से कर्म की श्रृंखला से सम्बद्ध है ।
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"हे गौतम ! कर्म और शरीर बीज और अंकुर के समान एक दूसरे के हेतु - हेतु के रूप में हैं । इस प्रकार कर्म की श्रृंखला का कोई आदि नहीं है ।
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