SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४७) याणि तिनि पडि सेवे अठ्ठ मासे अजावयं भगवं । अपिइत्थ एगया भगवं अद्धमासं अदुवा मासंपि ॥ ५ ॥ अवि साहिए दुवे मासे छपि मासे अदुवा विहरित्था । ओवरायं अपडिन्ने अन्नगिलायमेगया भुजे ॥ ६ ॥ छट्ठे एगया भुजे अदुवा अट्टमेण दसमेणं दुवालसमे एगया भुजे पेहमाणे समाहिंअपडिन्ने ॥ ७ ॥ णच्चा णं से महावीरे नोऽवि य पावगं सयमकासी । अन्नेहि वा स कारित्था कीरंतंपि नागुजाणिव्था ॥ ८ ॥ गामं पविसे नगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए । सुविसुद्ध मेसिया भगवं आयतजोगयाए सेवित्था ॥ ९ ॥ अदु वायसा दिगिंछत्ता जे अन्ने र सेसिणो सत्ता । घासेसणाए चिट्ठन्ति सययं निवइए य पेहाए ॥१०॥ अदुवा माहणं च समणं वा गामपिण्डोलगं च अतिहिं वा । सोवाग मूसियारिं वा कुकुरं वावि विट्ठियं पुरओ ॥ ११ ॥ वित्तिच्छेयं वज्जन्तो तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो । मन्दं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो घासमे सित्था ॥ १२ ॥ अवि सूइयं वा सुक्क वा सीयं पिण्डं पुराण कुम्मासं । अदु बुक्कसं पुलागं वा लद्धे पिण्डे अलद्धे दविए ॥ १३ ॥ अवि भाइ से महावीरे आसणत्थे अकुक्कुए झाणं । उड्ढं अहे तिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिने ॥ १४ ॥ अकसाई विगतगेही य सद्दरूवेसु अमुच्छिए भाइ । छत्थो कि परमाणे न पमायं' सइंपि कुव्वित्था ॥ १५ ॥ १ – पमायं' शब्द पर 'आचाराङ्ग सूत्र चूरिंग' में आता है - 'छउमत्थोवि परक्कममाणो' छउमत्थकाले विहरतेां भगवता जयंतेएां धुवं तेणं परक्कमं तेणं रण कयाइ पाओ कयतो, अविसद्दा णवरं एक्कसि एक्को अंतमुत्तं अयगामे सयमेव अभिसमागम्म । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy