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(२४६) इस प्रकार भीषण उपसर्ग और घोर परिषद-सहन करते हुए नाना प्रकार के विविध तप और विविध आसनों द्वारा ध्यान करते हुए भगवान् को साढ़े बारह वर्ष से भी कुछ अधिक समय हो गया था।
इस साढ़े बारह वर्ष में भगवान ने जो घोर तपश्चर्या की उसका विवरण इस प्रकार है।
तपस्या
ओमोयरियं' चाएइ • अपुढेऽवि भगवं रोगेहि। पुढे वा अपुढे वा नो से साइज्जई तेइच्छं ॥१॥ संसोहणं च वमणं च गायब्भंगणं च सिणाणं च । साबाहणं च.न से कप्पे दन्तपक्खालणं च परिन्नाय ।। २॥ विरए गायधम्मेहिं रीयइ माहणे अबहुवाई। सिसिरम्मि एगया भगवं छायाए झाइ आसी य ॥ ३ ॥ आयावइ य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुडए अभितावे । अदु जावइत्थ लहेणं ओयणामंथुकुम्मासेणं ॥४॥ १-डाक्टर याकोबी ने इस सूत्र का अनुवाद करते हुए सेकेड बुक आव द'
ईस्ट (वाल्यूम २२, पृष्ठ ८५) में लिखा है 'द' वेनेरेबुल वन वाजे एबुल टु ऐब्सटेन फ्राम इंडलजेंस आव द फ्लेश..." और 'फ्लेश' पर पादटिप्परिण लगा कर 'ओमोदरिय' लिखा है। ओमोदरिय का अर्थ टीका, चूणि
और कोष में जिस रूप में मिलता है, उन सब में से किसी से भी "फ्लेश' शब्द का प्रयोग सिद्ध नहीं होता।
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