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________________ (२२६) घूमते हुए, आप वैशाली पधारे और ग्यारहवाँ चातुर्मास आपने वशाली में ही व्यतीत किया । वैशाली के बाहर समरोद्यान था। उसमें बल्देव का मंदिर था। उसी में भगवान महावीर ने चातुर्मासिक तप करके चातुर्मास बिताया।' वैशाली में जिनदत्त नाम का श्रेष्ठी रहता था। उसकी ऋद्धि-समृद्धि क्षीण हो जाने से, वह जीर्णश्रेष्ठी नाम से विख्यात था। जिनदत्त सरल एवं परम श्रद्धालु था। वह प्रतिदिन भगवान् महावीर को वंदन करने के लिए जाता था और आहार-पानी के लिए प्रार्थना करता था। लेकिन, भगवान् नगर में कभी जाते ही न थे। सेठ ने सोचा-"भगवान् को मास-क्षमण (एक महीने का उपवास) महीना पूरा होगा, तब आयेंगे। महीना पूरा हुआ तब सेठ ने विशेष आग्रहपूर्वक भगवान से प्रार्थना की लेकिन भगवान् न आये । तब उसने द्विमासिक क्षमण की कल्पना की । जब दो महीने के अंत में भी प्रार्थना करने पर भगवान् नहीं आये, तो उसने त्रिमासिक मास-क्षमए की कल्पना की। जब तीन महीने पूरे हुए तो उसने फिर भगवान् से प्रार्थना की और इस बार भी जब भगवान् न आये, तो उसने सोच लिया कि भगवान् ने चातुर्मासिक तप किया है। चातुर्मासिक तप पूरा होने पर सेठ ने भगवान् से अपने घर पधारने की विनंती बड़े अनुनय-विनय से की और घर वापस लौट कर भगवान् के आने की प्रतीक्षा करने लगा। जब मध्याह्न हो चुका, तब पिंडेषणा (भिक्षाचर्या) के नियम के अनुसार नगर में घूमते हुए भगवान् ने अभिनव श्रेष्ठी के घर में प्रवेश किया। घर के मालिक ने भगवान् महावीर को देखते ही दासी को इशारा किया कि जो कुछ हो वह दे दो। दासी ने लकड़ी की कलछी (दारुहस्तक) से कुलमाष (राजमाष) लिया और भगवान् ने उससे ही चातुर्मास-तप का पारणा किया । १-अ-त्रिषष्टिशलाका, पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ४, श्लोक ३४३, पत्र५३-१ आ-महावीर चरियं नेमिचन्द्र-रचित, श्लोक ४३, पत्र ४८-२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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