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________________ (२०४) साधुओं को फटकार कर उसने उनके गुरु के निधन की सूचना दी और अपने स्थान को वापस चला गया । तम्बाय-सन्निवेश से भगवान् कूपिय-सन्निवेश' गये । यहाँ लोगों ने भगवान् को (चारिय) गुप्तचर समझकर पकड़ लिया और खूब पीटा । भगवान् ने उनके प्रश्नों का कुछ भी उत्तर नहीं दिया। अतः, वे कैद कर लिए गये । पार्श्वनाथ संतानीय विजया और प्रगल्भा नाम की साध्वियों को जब इस बात की सूचना मिली, तो वे उस स्थान पर गयीं, जहाँ पर भगवान् कैद थे। उन साध्वियों ने भगवान् का वंदन करके पहरेदारों से कहा--"अरे, यह क्या किया? क्या तुम लोग राजा सिद्धार्थ के पुत्र धर्मचक्रवर्ती भगवान् महावीर को नहीं पहचानते ? अगर इन्द्र को तुम्हारे दुष्कार्य का पता चला, तो तुम्हारी क्या दशा होगी? इन्हें शीघ्र मुक्त करो।" भगवान् का परिचय सुनकर सभी अपने किये पर पश्चाताप करने लगे और भगवान् से क्षमायाचना करने लगे।" कूपिय-सन्निवेश से भगवान् ने वैशाली की ओर विहार किया। गोशाला ने यहाँ भगवान के साथ चलने से इनकार करते हुए कहा- "आप न तो मेरी रक्षा करते हैं और न आपके साथ रहने से मुझे सुख है। आपके ' साथ मुझे भी कष्ट झेलना पड़ता है और सदा भोजन की चिन्ता बनी .. रहती है। गोशाला यहाँ से राजगृह नगरी की ओर गया और भगवान् वैशाली की ओर २ । वहाँ वे एक कम्मारशाला (लुहार के कारखाने) में जाकर ध्यान में आरूढ़ हो गये। उस कारखाने का मालिक लुहार ६ महीने से बीमार था। दूसरे दिन बीमारी के बाद अपने यंत्रादि के साथ जब वह अपने काम पर १-कोपिया-यह ढूह बस्ती जिले की खलीलाबाद तहसील की खलीलाबाद मेंहदावल सड़क के सातवें मील पर स्थित है। बस्ती शहर से यह स्थान लगभग ३१ मील की दूरी पर है । इसका प्राचीन नाम अनुपिया था। देखिये-कोपिया(मदन मोहन नागर) सम्पूर्णानंद-अभिनन्दन-ग्रंथ, पृष्ठ १६५ २-आवश्यक चूरिण, पूर्वार्द्ध, पत्र २६२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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