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________________ (१६२) गोशाला के मन में विचार हुआ-"यह कोई मामूली साधु नहीं हैं। कोई प्रभावशाली तपस्वी मालूम होते हैं। अत: अच्छा हो, मैं इनका शिष्य हो जाऊँ।" इस विचार से वह भगवान् के पास गया और बोला-“भगवान् मुझे अपना शिष्य बना लें।" भगवान् ने उसका कुछ भी :उत्तर नहीं दिया । और दूसरा मासक्षमण करके ध्यान में स्थिर हो गये। इस दूसरे मास क्षमण की पारना आनन्द श्रावक ने 'खाजा' से उतनी ही भक्ति पूर्वक कराया। उसके बाद तीसरा मास क्षनण किया और उसकी भी पारना सुनन्द श्रावक के यहाँ खीर से किया। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भिक्षा के लिए जाते हुए, गोशाला ने भगवान् से पूछा-'आज मुझे भिक्षा में क्या मिलेगा !" भगवान् ने उत्तर दिया'बासी उतरा हुआ कोदो का भात, खट्टी छाछ और खोटा रुपया (कूडग रूवग)" भगवान् के वचनों को मिथ्या करने के उद्देश्य से वह बड़े-बड़े धनाढ्यों के यहाँ भिक्षा के लिए धूमने लगा, लेकिन उसको कहीं पर भी भिक्षा सुलभ नहीं हुई। अन्त में, उसको एक लुहार के यहाँ खट्टी छाछ मिले भात का भोजन प्राप्त हुआ और दक्षिणा में एक रुपया मिला, जो चलाने पर नकली साबित हुआ। इस घटना का गोशाला के मन पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा। वह 'नियतिवाद' का पक्का समर्थक हो गया । और, उसने यह निश्चय कर लिया कि जो वस्तु होने की है, वह होकर रहती है और जो कुछ होने वाला रहता है, वह पहले से ही निश्चित् रहता है । चातुर्मास समाप्त होते ही, भगवान् ने नालंदा से विहार किया और कोल्लागसंनिवेश में जाकर बहुल ब्राह्मण के यहाँ अन्तिम मास क्षमण का पारणा किया । नालंदा से भगवान् ने जब विहार किया, उस समय गोशाला भिक्षा लेने के लिए बाहर गया हुआ था। भिक्षा लेकर जब शाला में आया, तो भगवान् वहाँ पर नहीं थे। पहले उसे विचार हुआ कि भगवान् नगर में गये होंगे। वह नगर में गया और भगवान् को ढूँढ़ने लगा। गली-गली में घूमा; पर भगवान् का उसे कहीं पता नहीं चला। वह निराश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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