SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६०) [पृष्ठ १८६ की पादटिप्परिण का शेषांश ] भाग २, पृष्ठ ७२३, मज्झिम निकाय की पपंचसूदनी-टीका, ii, ९८७; संयुक्त निकाय की टीका सारत्थपकासिनी i, २४३)। कपिलवस्तु से राजगृह ६० योजन दूर थी (डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग १, पृष्ठ ५१६) और कुशीनगर से २५ योजन दूर (दीघनिकाय, अ० २, ३)। राजगृह से गंगा ५ योजन दूर थी (डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स भाग २, पृष्ठ ७२३, महावस्तु i, २५३) । राजगृह से नालंदा १ योजन दूर था (डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ ५६) । डाक्टर मोतीचन्द्र ने सार्थवाह (पृष्ठ १७) में लिखा है कि, श्रावस्ती से तक्षशिला १६२ योजन दूर थी और वहाँ से राजगृह ६० योजन । अपने इस दूरी-निर्णय का डाक्टर साहब ने कोई प्रमाण नहीं दिया है। २-नालंदा-पटना से दक्षिण-पूर्व में ५५ मील, राजगृह से ७ मील, और बख्तियार-लाइट-रेलवे के नालंदा-स्टेशन से २ मील की दूरी पर स्थित बड़गाँव प्राचीन काल की नालंदा है। , बिहार-शरीफ से यह करीब ५ मील दूर है । बिहार-शरीफ से राजगिर जाते हुए नालंदा नामक स्टेशन बीच में पड़ता है। सूत्रकृतांग नामक दूसरे आगम के सातवें अध्ययन में 'नालंदा' शब्द पर लिखा है-'सदा आर्थिभ्यो यथामित्यबितं ददातीति नालन्दा' आर्थियों को जो यथेप्सित प्रदान करता है, वह नालंदा है। वह 'राजगह नगर बाहिरिका'- राजगृह नगर का शाखापुर था। ह्वेनसांग ने लिखा है इसका नाम आम्रवन के मध्य में स्थित तालाब में रहने वाले नाग के नाम पर नालंदा पड़ा। (डिक्कनरी आव पाली प्रापर नेम्स, खंड २, पृष्ठ ५७, बील-लिखित भाग २, पृष्ठ १६७) ३-गुपचन्द्र-रचित 'महावीर-चरित्र' (पत्र १७३।१) में उसका नाम अर्जुन लिखा है। ४–'इंडालाजिकल स्टडीज' भाग २ (पृष्ठ २४५) में डाक्टर विमलचरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy