________________
(१५३) विजय जी के कुछ भ्रमों पर विचार अवश्य करना चाहेंगें। आपने लिखा है"...दीक्षा काल में या आगे-पीछे कहीं भी यशोदा का नामोल्लेख नहीं मिलता।" इसके लिए भी हम यहाँ कुछ अतिरिक्त प्रमाण देना आवश्यक नहीं समझते जब कि हम 'कल्पसूत्र' का ही प्रमाण ऊपर दे आये हैं ।
आगे पं. कल्याण विजयजी ने लिखा है-'यदि तब तक यशोदा जीवित होती, तो महावीर की बहन और पुत्री की तरह वह भी प्रव्रज्या लेती अथवा अन्य रूप से उसका नामोल्लेख पाया जाता है।" यह सब लिखने के बाद पं. कल्याणविजय जी लिखते हैं कि-"इतना तो निश्चित् है कि महावीर के अविवाहित होने की दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता बिलकुल निराधार नहीं है।" पं. कल्याण विजयजी ने महावीर-चरित्र के लिए जितना परिश्रम किया वह स्तुत्य है; पर उनकी विवाह की शंका को कौन मिटा सकता है, जब कि वे उनकी पुत्री को प्रव्रज्या मान कर भी विवाह होने पर ही शंका प्रकट करते हैं । पृष्ठ १२ की इस पाद-टिप्परिण के अतिरिक्त पृष्ठ ८१ पर पं. कल्याणविजय जी ने लिखा है “भगवान् महावीर की पुत्री ने भी-जो जमालि से व्याही थी-इसी वर्ष एक हजार स्त्रियों के साथ आर्याचन्दना के पास दीक्षा ले भगवान् के श्रमणी-संघ में प्रवेश किया।" कल्याणविजय जी ने लिखा है-“महावीर ने २८-वें वर्ष के बाद घर में रहकर दो वर्ष संयमी जीवन बिताया; ऐसे उल्लेख अनेक स्थलों में मिलते हैं"--यहाँ 'अनेक' लिखकर कल्याण विजय जी चूक गये। उन्हें ग्रन्थों का नाम देना चाहिए था और जहाँ तक मैं जानता हूँ, जहाँ-जहाँ सूत्रों में दो वर्ष तक संयमी जीवन बिताने की बात लिखी है, वहीं-वहीं उनके विवाह की भी बात है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org