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________________ (१४९) इस प्रसंग में ३ प्रश्नों पर शङ्का उपस्थित की जाती है(१) न य इच्छिआभिसेआ कुमारवासंमि पव्वइआ। (२) पढमे वए पव्वइआ सेसा पुण पच्छिमवयंमि । (३) गामायारा विसया निसेविआ ते कुमारवज्जेहिं । इन प्रश्नों का समाधान इस रूप में है: (१) उस पद में 'इच्छि आ' का अर्थ 'स्त्री' नहीं है वरन् 'अभिलषित', 'वांछित', 'इच्छित' अथवा 'इष्ट' है (देखिये, पाइअसद्दमहण्णवो, पृष्ठ १६६)। उसका अर्थ लोग जो 'स्त्री' करते हैं, वह अशुद्ध है । आगमोदयसमिति द्वारा प्रकाशित आवश्यक-नियुक्ति में यह अशुद्ध रूप इस प्रकार छप गया है-"न य इत्थिआभिसेआ कुमारवासंमि पव्वइआ।" -आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र १३६।२ । प्रथम तो 'इत्थिआभिसेआ' यह पाठ ही अशुद्ध है। यहाँ होना चाहिए, 'इच्छिआभिसेआ'—जैसा कि मलयगिरि ने लिखा है। 'इच्छिआभिसेआ' का संस्कृत छायानुवाद होता है, 'ईप्सिताभिषेकाः' जैसा कि मलयगिरि ने लिखा है।' सागरानंदसूरिजी अगर मलयगिरि की इस टीका पर ध्यान देते, तो उनका पाठ शुद्ध हो जाता और उन्होंने उस पद के नीचे टिप्पणी लगाकर जो अनर्थ किया है, वह भी न हो पाता।। (२) 'पढमवए पव्वइआ' वय के प्रथमांश में दीक्षा ली, इसका भी यह अर्थ नहीं लिया जा सकता कि 'अविवाहितरूप' में दीक्षा ली । 'पढमवए' की ही तरह का प्रयोग 'लोक-प्रकाश' में भी हुआ है और वहाँ उसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है। १-इच्छियाभिसे या-ईप्सिताभिषेका-अभिलषित राज्याभिषेकाः, -श्री आवश्यक नियुक्ति, टीका श्री मलयगिरि-प्रथम भाग, पत्र २०४-१। 'न य इच्छिआभिसे आ......' 'न चेप्सितराज्याभिषेकाः......' -श्री आवश्यक नियुक्तिदीपिका, भाग १, पत्र ६३-१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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