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________________ (१४८) का अर्थ है--राज्य भोगकर। इससे ही ध्वनित होता है कि कुमारकाल का अर्थ यहाँ 'कुंआरे थे' या 'विवाहित' यह उद्दिष्ट नहीं है ।" । ____ नाथूराम ने अपनी उसी पुस्तक में एक स्थान पर 'कुँआरा' अर्थ लेने वालों की शंका का उल्लेख करते हुए स्पष्टीकरण भी किया है (पृष्ठ १००) "महावीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि, और वासुपूज्य इन (पाँच ) को छोड़कर शेष तीर्थंकर राजा हुए। ये पांचों क्षत्रियवंश और राजकुलों में उत्पन्न हुए। इन्होंने राज्याभिषेक की इच्छा नहीं की और कुमारावस्था में ही प्रवजित हो गये।" जैन आगम-ग्रंथों में 'कुमारावास' शब्द आया है। उसकी परिभाषा इस प्रकार दी गयी है :कुमाराणामराजभावेन वासः कुमारवासः । -स्थानाङ्ग सटीक, ठा० ५, उद्देश : ३, पत्र ३५१-२ । इसी प्रकार का अर्थ 'प्रश्नव्याकरण' में भी दिया गया है:कुमाराः - राज्यार्हाः । -प्रश्नव्याकरण अभयदेवसूरि-कृत टीका, पत्र ६६/२ आवश्यकनियुक्ति का एक प्रसंग हम ऊपर दे आये हैं। उसके आगे के कुछ भाग को लेकर लोग अपनी शंका निम्नलिखित रूप में उपस्थित करते हैं (आ० नि० दीपिका, पत्र ६३-१, ६४-१): वीरं अरिहनेमि पासं मल्लि च वासुपुज्जं च । ए ए मुत्तण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥ २२१ ॥ रायकुलेसुऽवि जाया विसुद्धवंसेसु खत्तिअ कुलेसं । न य इच्छिआभिसेआ कुमारवासमि पव्वइआ॥२२२ ॥ वीरो अरिहनेमी पासो मल्ली अ वासुपुज्जो अ। पढमवए पव्वइआ सेसा पुण पच्छिमवयंमि ॥ २२६॥ गामायारा विसया निमेविआ ते कुमारवज्जेहिं । गामागराइएसु व केसि (सु) विहारो भवे कस्स ।। २३३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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