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________________ (१४०) सबसे पहले उस वृक्ष को छू ले, वह विजयी और शेष पराजित। इस बार वह देव लड़के का रूप धारण करके वर्द्धमान कुमार के साथ दौड़ा । कुमार वर्द्धमान ने उसे भी पराजित कर दिया और उस वृक्ष को छू लिया। तब नियम के अनुसार कुमार वर्द्धमान उस लड़के के कन्धे पर चढ़े और नियत स्थान पर आने लगे । तब देव ने वर्द्धमान कुमार को डराने के लिए अपना शरीर सात ताड़ प्रमाण ऊँचा बना लिया और बड़ा रुद्र-रूप धारण किया । वर्द्धमान कुमार को दैवी-माया समझते देर न लगी। उन्होंने जोर से उसके मस्तक पर मुष्टिका से प्रहार किया। वह देव इस प्रहार से जमीन में धंस गया। अब उस देव ने अपना असली रूप प्रकट किया। लज्जित होकर वह वर्द्धमान कुमार के चरणों पर गिर पड़ा और बोला-- "इन्द्र ने आपकी जैसी प्रशंसा की थी, आप उससे भी अधिक धीर तथा वीर हैं।" ऐसा कहकर वह देव अपने स्थान को वापस चला गया। इसी समय स्वयं इन्द्र ने आकर आपका नाम 'महावीर' रखा। तब ही से 'वर्द्धमान' 'महावीर' के नाम से विख्यात हुए। विद्याशाला-गमन भगवान् महावीर के आठ वर्ष से अधिक होने पर कुछ उनके माता-पिता ने शुभ-मुहूर्त देख कर सुन्दर वस्त्र-अलंकार धारण कराके हाथी पर बैठा कर भगवान महावीर को पढ़ने के लिए पाठशाला में भेजा । पण्डित को भेंट देने के लिए बढ़िया पोशाक, अलंकार और नारियल तथा विद्यार्थिओं को बांटने के लिए नाना प्रकार की खाने की एवं अभ्यास में उपयोग की वस्तुएं पाठशाला में भेजी गयीं। जब भगवान् पाठशाला पहुँचे तो पण्डित ने भगवान् को बैठने के लिए सुन्दर आसन दिया। इतने में इन्द्र का आसन प्रकम्पित हुआ । अवधि ज्ञान से देखकर इन्द्र . विचार करने लगे-" माता-पिता का मोह तो देखिये । तीन ज्ञान के धनी भगवान महावीर को एक साधारण पण्डित के पास पढ़ने के लिए भेजा है। यह ठीक नहीं है।" यह सोच कर ब्राह्मण का रूप धारण करके इन्द्र स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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